रक्षाबंधन मुबारक भैया

रक्षाबंधन मुबारक भैया

ना ईर्ष्या ,ना स्वार्थ ,
ना रहता अंहकार ।
भावनाओं का सैलाब
और प्यार बेशुमार ।।

ना आकांक्षाओं का अवलंबन
पवित्र नेह सिक्त अलौकिक बंधन ।
भाई बहन का मजबूत होता रिश्ता
दो आत्मा एक दूजे के लिए फरिश्ता ।।

बचपन की वह सुनहरी यादें
भैया तेरे वो कानून कायदें ।
हर वक्त ढ़ाल,कवच बनता था तू ,
हर मुश्किलों से मेरी लड़ता था तू ।।

चट्टान सा मजबूत डटा रहता
दु:खों के लहर को सहता रहता ।
बहना को तेरी छत्रछाया मिली,
हर यादों में दिखती तस्वीर तेरी ।।

कभी रुलाते ,झगड़ते , कभी ताना देते ।
नटखट से तुम ! बाल खींच कर हँसते!
मैं मम्मा- मम्मा टेर लगाती रहती
तुम दूर खड़े आनंद लेते रहते ।।

पर भाई बहन का प्यार
कभी होता ना था कम ।
एक दूसरे को खुशी देते ,
ओढ़ लेते थे गम ।।

जीजु को कितना समझाए थे !
विदाई में तुम सबसे ज्यादा रोए थे !
रिद्धि -सिद्धि ,शुभकामना
सब मेरे लिए बटोरे लाए थे ।।

ओढ़ा कर खुशियों की सुंदर चुनर
जा खुश रहना तुझे लगे मेरी उमर।
देख नहीं सकता आँसू तेरे अधरों पर ,
मुस्कुराती रहना तुम मंगल परिधि पर ।।

तू जहाँ भी होगी ,
हर सावन आऊँगा ।
नहीं आ पाया बहना तो ,
हवा से पैगाम भेजूँगा ।।

बहना मेरी निश्चल ,
पावन गंगाजल है ।
सावन की झड़ी लगाती,
स्नेह और समर्पण है ।।

पूर्णमासी की उजास
लाती खुशियाँ चहूँ  ओर।
तू रहे आनंदित सदा ,
रहे जीवन में नित्य भोर ।।

भैया तेरी कलाई पर ,
राखी में सजाती रहूँ ।
खुशियों का तोरण,
तेरे आंगन में लगाती रहूँ ।।

अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कट ओमान

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