संघर्ष ही तो जिंदगी हैसंघर्ष ही तो बंदगी हैजो पी गया हंसकर के गममहक की उसकी जिंदगी

[मंच को नमन
मुक्तक-
संघर्ष  ही   तो  जिंदगी  है
संघर्ष   ही   तो  बंदगी   है
जो पी गया हंसकर के गम
महक  की  उसकी  जिंदगी
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आस्था  के  दीप  जलाओ  तो  जानूं
दिली कालिखों को मिटाओ तो जानूं
अपनों की चाहत तो सब किया करते
गैरों  को  अपना  बनाओ  तो  जानूं
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कुछ   लोग   मंजिलें   तलाशते   रहे
जीवन   के  सफर   में   भागते      रहे
ख्वाबों के शीश महल बन चुके बहुत
पर जिंदगी घरों पर वह गुजारते रहे
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     मैं तो अपनी बात कहूंगा 
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तुम चुप हो तो हो जाओ मैं तो अपनी बात कहूंगा
तुम करो आरती महलों की मैं निर्धन की बात कहूंगा

अब तक मिल न पाई रोटी भूखे नंगे लोगों को
बोलो कैसे मिल पाएगी लाली सूखे गालों को
कब मिल पाए नरम बिछौने  गुदड़ी के लालों को
फटे होंठ झुलसे तन की मैं तो खुलकर बात कहूंगा
तुम चुप हो तो हो जाओ मैं तो अपनी बात करूंगा

सपने पूरे झोपड़ियों के भवनों से कब हो पाए
कितने दिन सालों में बीते एक किरण भी देख न पाए
पीढ़ी दर पीढ़ी बीती भूचालों से निकल न पाए
आहों और कराहों की दर्द भरी में बात कहूंगा
तुम चुप हो तो हो जाओ मैं तो अपनी बात कहूंगा

कब तक और सहोगे तुम परिवर्तन तो लाना होगा
हाथों में अंगारा लेकर तुमको तो बढ़ना होगा
कह दो रावण कंसों से अब ये सिंहासन तो मेरा है
तुम गांडीव लो हाथों में मैं संघर्षों की बात कहूंगा
तुम चुप हो तो हो जाओ मैं तो अपनी बात कहूंगा
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                चिंगारी
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जो धधक रही है चिंगारी अब ज्वाला बनने वाली है
ओ मौतों के सौदागर अब तुम्हें निगलने वाली है

हम क्रांति दूत हैं मतवाले
कभी न पीठ दिखाते
हम खेला करते तलवारों से
अंगारों पर चलते
औरों के पग चलने वालों
तुम निश्चित मिट जाओगे
जो घाव दिए हैं तुमने हमको
वो जंग न रुकने वाली है

ओ---

अपना अंग समझकर तुमको बार-बार छोड़ा है हमनें
सद्भाव भरे संबंधों को
लाचारी समझा है तुमनें
बम की दहशत फैलाने वालों
न तुम भी बच पाओगे
जिन फूलों को रौंदा तुमने
वो गंध न मिटने वाली है

ओ ---

बीज तुम्हारा है बोया तुमनें
तुम ही इसको काटोगे
अन्याय असत पर चलने वालों
एक दिन तुम पछताओगे
तुम सागर से मिल जाओ
या मिल जाओ तूफानों से
जो झुलसाए घर तुमनें
वो आग न बुझने वाली है

ओ मौतों के सौदागर
अब तुम्हें निकलने वाली है
जो धधक रही है चिंगारी
अब ज्वाला बनने वाली है
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मैं घोषणा करता हूं कि उपर्युक्त रचनाएं मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच,
जनपद -जालौन, उत्तर- प्रदेश-285205

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