🌹🌹🌹सामन के दोहे 🌹🌹🌹
लगतइ सामन हउकिगा , किहिस दउगरा जोर l
सूपा भरि उलदिस नगद, पानी भा चहुँओर ll
नई मेड़ भसकइ लगी, गईं पुरनिए फूट l
मड़ई उड़ी टटेर अस, तिनिहर, घोंपा टूट ll
चउचक खेती कइ रहें, जे किसान बड़बार l
दूबर, पातर बइठ हां, बपुरे धरे कपार ll
केहू के तोरा सधा, केहू केर नसान l
हरबहबा परधान के, मुखिया के संउहान ll
हर, बरदा, लादे बिआ, केऊ हइ उधड़ान l
केहू के सइला, जुआँ, नगरा, हरिस बढ़ान ll
जोता के माटी बही, कोपराबा पथरान l
केहू के भा बिजमरी, "सरित" करा गिलियान ll
बाँधन के पन्ना बहइ, नरदा गाबइ गीत l
ताल ताल ठोंकत कहइ, लिहन सिन्धु का जीत ll
बउली छलका मारती, गड़ही भइ मुड़थप्प l
नरछोहा पगलाइगा, हाँकत लम्बा गप्प ll
उल्टी गंगा बहि रही, गाँव सहर के खोर l
धारा ई कइती बहइ, लहर दूसरी ओर ll
अरहरि का खोंखी भई, उरद मूंग का साँक l
जोन्हरी का जूड़ा भया, "सरित" धान के धाक ll
इगिड़ तिगिड़ करती तिली, कोदउ गा सुरलोक l
बजरी, सनई नास भा, किए मकाई सोक ll
सामा, काकुन, पेटुआ, इनकर सतियानास l
मेझरी मरी हेराइ गइ, हबइ सरग मा बास ll
कर्रकोय गूलर करइ, झींगुर ताने तान l
पखिआरी के पंख भा, "सरित" निबल गिरदान ll
" सरित" मुरइला नचि रहें, कहे पपिहरा पीव l
कोयल कूकी मारती, भखे जीव का जीव ll
मुँह फारे भीती खड़ी, हइ कटुई दहरान l
केहू के खोंपा गिरा, अउ मुड़हर भहरान ll
खबडीहिल भइ डेहरी, लगी दुआरे लेउ l
आंगन मा दहकिच्च भा, "सरित" न बइठइ केउ ll
डड़बारा डोलत हबइ, गइला गुठुअन खाप l
सब डिलहा दहकत फिरा, ई मुलहा के बाप ll
गउरइया दुबकी हबइ, पड़की हइ कजरान l
पेंगा पें पें कइ रहा, अस कपोत गमरान ll
गलरी कल्ला कइ रही, लीलकंठ पियरान l
कउआ चढ़ा मुड़ेर पर, अस महोक चिकनान ll
बन सुग्गा हल्ला करइ, घर के बाँचत बेद l
पढ़ा संत संगति करइ, अँउठा छाप लबेद ll
बंदर बइठा डार पर, सीगट खड़ा बगार l
खरहा खोहा मा घुसा, लोखरी लुकी चुपार ll
लेंहड़ि भर कूकुर हमा, हेरत फिरत सिकार l
निबल बछेरू जो मिले, सारे देत निबार ll
बकुला अस बइकल बने, हइ धनेह का सोच l
खूसड़ खोड़इल मा लुका, कउआ लेइहीं नोच ll
चील कहूं हेरे मिलइ, भए लापता गिद्ध l
सज्जन हेरे से मिलय, दुर्लभ योगी, सिद्ध ll
ग्राम कवि संतोष पाण्डेय "सरित" गुरु जी गढ़ रीवा (मध्य प्रदेश) 8889274422 /8224913591
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Badlavmanch
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