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शारदा भवानी ज्ञानवा के महरानी झुकाव तानी।
शीश र उरे चरन में झुकाव तानी।
आदिशक्ति दुर्गा तूही तूही शेरावाली।
राधा रुक्मिणी तूही तूही वीणा वाली।
रुपवा हजार प्यार क इसे के बखानी। झुकाव0।
शीश र उरे चरन में झुकाव तानी।
सुर लय तान निक र उरे से पाइ के
मशहुर महान जग नेहीया लगाइके
जे -जे शरन में ग इल काट ताटे
चानी। झुकाव 0।
शीश र उरे चरन में झुकाव तानी।
तुलसी, कबीर, सुर सेइ के चरनीया।
क इले अजोर गुण गावे सगरो दुनियां।
तोहरे के पाइ सब कुछ ग इले जानी। झुकाव0।
शीश र उरे चरन में झुकाव तानी।
महिमा महान माई रुप रंग छबी के।
आसरा लागल बाटे "बाबूराम कवि "के।
मिली जाइत कृपा अजोर के निशानी।झुकाव0।
शीश र उरे चरन में झुकाव तानी।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) जिला -गोपालगंज (बिहार)
मो0नं0-9572105832
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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