सुहानी सी ठंडी हवा

सुहानी सी ठंडी हवा


सुहानी सी ठंडी हवा
काले बादल और
रिमझिम बरसती वर्षा
बिजली की गर्जन
और उसकी चमकती छटा
वह बारिश के मीठे मीठे कन
एहसास ने किया प्रसन्न
खो गए हम सब कुछ
ना रहा अपना पता।

भीग उठा तन बदन
पायल ने किया छन छन
नृत्य करने लगा मन
बज उठे घुंगरू
हो गई में  मगन
तोड़ के सारे बंधन
करती हूं, प्रकृति का
जिसने बनाया, उसे नमन।

यह पेड़ों पर पत्तियों का हिलना
उन पर बारिश की बूंदों का मचलना
खुशी में झूमे नाचे सब पेड़
कभी तन जाते जवान बनकर
कभी झुक जाते, लगते अधेढ़
पक्षी भी भूल के दुनियादारी
ठंडी ठंडी फुवारों से, कर के यारी
सावन के झूले में लगे हैं झूल।


कल्पना गुप्ता /रत्न

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