बहुत याद आती है तुम्हारी ,

बहुत याद आती है तुम्हारी ,
बाहें फैला कर मुझे गले लगाना।
याद आती है ,हाथों में हाथ,
थामकर मुझे विश्वास दिलाना।
तेरे बिन मुझे बहुत आती है रुलाई।
बीत रहा अब तो सावन 
आ जा ओ! पिया हरजाई।
छेड़ कर पवन पुरवाई भी , 
मुझे बहुत तड़पाती है। 
प्रीत के चुंबन से नित सुबह, 
जगाती। 
नींद से जगते ही हाथों में तेरे, 
प्याली चाय की थमाती। 
तुम्हारे बिन ये कड़क चाय मुझे, 
तनिक भी नहीं सुहाती है। 
तुम क्या जानो विरह में , 
डंस रही सुहानी रातों का पहर। 
पल-पल मैं घुट-घुट कर,
पी रही हूँ जुदाई का जहर। 
मैं बातूनी थी ये तुम जानते हो, 
थी अभी मेरी बातें अधूरी। 
जाने से पहले तो कर जाते साजन,
मेरी बातों को पूरी। 
प्रेम का सम्पूर्ण वृतांत तुमने सदा
मुझे पढ़ाया । 
मैं भटकी हुई राही थी और तुमने,
सच्चा प्रेम मार्ग दिखलाया । 
ड्यूटी पर जाने को ,
सुटकेश उठा कर चल दिये। 
परदेश जाकर भुला कर साजन, 
ऐसा क्यों छल किये?
ना कोई call और ना ही, 
कोई msg आया।। 
ऐसा क्यों साजन,
तुमने व्यवहार निभाया?
तेरे प्यार को तरसी हूँ मैं, 
प्रीत का मौसम यूँ ही बीत रहा। 
 हार बना कर बाहों का छोड़ा,
हृदय घट रीत रहा। 
  क्या याद न आयी तुझको जरा भी ।
मेरी जुल्फों की शीतल छाया। 
ऐसी भी भला क्या थी खता थी मेरी,
जो इतना मुझको तड़पाया।
नित श्रृंगार कर के मैं, 
तुमको बहुत रिझाती थी। 
प्यार भरे नखरे मैं
तुमको रोज दिखाती थी।
क्या ये सब तुमको,
बिल्कुल भी याद नहीं। 
लगा सताने डर मुझको ,
तुमको तो फरियाद नहीं। 
अपने मन के मंदिर में , 
ख्वाबों का कलश सजाये हूँ। 
 माँग में कुमकुम अपने,
तुम्हारे  नाम की लगाए हूँ। 
तस्वीर को तेरी मैं, 
सीने से लगाए बैठी हूँ।
जल्द वापस आओगे, 
ये आस लगाए बैठी हूँ। 
ज्यादा भाव खाते हो ।
नखरे बहुत दिखाते हो।
तो, लो मैं भी अब रूठ गई,
अब तुम मुझे मनाओगे।
कितना हसीन लम्हा होगा जब,
तुम मुझे गले लगाओगे।
नए - नए हथकंडे अपनाकर कर, 
 मुझको तुम मनाओगे। 
मुझे मनाने को नये - नये,
उपहार भी लाओगे। 
तब मेरी आँखों से छलकेंगे,
निश्छल प्रेम की धारा।
मिल जाएगा मुझको फिर से
तेरी बाहों का सहारा-2
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          ** एकता कुमारी * *

Badlavmanch

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