कोरोना का गीता ज्ञान

कोरोना का गीता ज्ञान (हास्य व्यंग)
भाग 1

कल रात कोरोना देव मेरे सपनों में आए 😭उन्होंने कहा इस गंभीर मौके में भी तुमने बहुत ही लड्डू बांटे  हमारी बात मान कर ज्ञान भी बांटो ।

मैं डरी,, सकुचाई, उनकी हां में हां मिलाई।। फ़िर थोड़ा धैर्य धरकर मैंने कहा महाराज मैं कोई अर्जुन नहीं । कोरोना देव ने कहा, मैं ग्लोबली सर्व व्यापक हूं,,, और तुम भी एक ग्लोबल टीचर,,, इसलिए यह ज्ञान बांटने का काम तुमको ही करना पड़ेगा।।।

"मरता क्या न करता", मैंने स्वीकार कर लिया,,, वही ज्ञान आपसे साझा कर रही हूं ,,, उन्होंने वचन दिया है,,, जो भी इस ज्ञान को पढ़ेगा , बांटेगा उसके मैं इर्द-गिर्द नहीं भटकूंगा,,, इसीलिए आप सब से माफी मांगती हुई साझा कर रही हूं।।

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आओ इस कर्फ्यू में मौन को मुखरित होने दो,
आत्ममंथन करो ह्रदय  में हलचल होने दो।।

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रिश्तो के पीछे भागना छोड़ दीजिए,
अपने होंगे लौट आएंगे,
पराए होंगे,
रोता छोड़ जाएंगे।।

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रिश्तो का मंजर दुनिया खूब बनाएगी,
तुम्हें ही धक्का देकर आगे बढ़ जाएगी।।

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तानों -बानो के इस शहर में तुम ना फंसना ,
रोज रंग बदलती दुनिया कहती तुम ना बदलना।।

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इस अनोखी दुनिया की क्या बात करूं?

मोती भी गहरे खारे रही सागर की गहराइयों में पाओगे,
कीचड़ के बिना कमल भी नहीं खिला पाओगे !

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भीड़ में भी तन्हाई बड़ी है,
रिश्ते बहुत हैं, पहचान नित्य नई है।।

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👩 नारी के अस्तित्व में कोरोना देव का दिया हुआ ज्ञान। 👩

मक्खी हूं क्या जो दूध से निकाल फेंक देते हो,
दर्पण हूं क्या परछाई देखकर मुंह मोड़ लेते हो।।

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सिसकियों में बंधती , घुलती जाती है जिंदगी
सब को खुश रखते रखते रूठी जाती ये जिंदगी।।

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कोई बाजीगर है। कोई सौदागर है।
रिश्तो की जादूगरी दिखाते हैं,
फिर उसी विश्वास को ,
बाजार में बेच आते हैं ।।

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