©*गजल*
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*कभी था यहाँ खूबरत सा समा, मेरे वतन में।*
*अब हो गया हर शख्स़ बदगुमाँ, मेरे वतन में।*
*जवानी बददुवा बन गयी आज उस मजलूम की,*
*लूट गया सबकुछ उसका यहाँ, मेरे वतन में।*
*हर शख्स़ मसरुफ था उसकी तस्वीर बनाने में,*
*तडपती रही मगर देती किसे सदा, मेरे वतन में।*
*बेरहेमी से होता है कत्ल़ दिन के उजालो में,*
*मिलता नहीं गुनाहगारों का निशाँ, मेरे वतन में।*
*पेट में कुचल दी, कच्ची कली उस बेशर्म ने,*
*या कचरे में पडी मिलती है बेटीयाँ, मेरे वतन में।*
*हवस ने उसे कब का नंगा कर दिया था लेकिन,*
*सौ चुहे खा कर बिल्ली है बेगुनाह मेरे वतन में।*
*ख्वाब की तराह वो भी टूट गया छत बनाते बनाते,*
*कब बनेगा किसानो का आशियाँ, मेरे वतन में।*
*न दीन पता है, न धरम का ईल्म है उन्हे फिर भी,*
*कैसे कैसे बन गये है खुदा, मेरे वतन में।*
*ये पागल मंजिल तक पाहुचेंगे कैसे बतावो मुझे,*
*सब अंधे बने बैठे है रहनुमा मेरे वतन में।*
*झुठ ने कोहराम मचा रखा है सच के खिलाफ,*
*और सच्चे हो गये है बेजुबाँ मेरे वतन में।*
*जो उनके सूर में बोले सिर्फ वो ही देशभक्त है,*
*उन पे रहेती है हुकूमत भी मेहेरबाँ, मेरे वतन में।*
*रंग, तहेजीब, त्योहार, सब है अलग अलग हो गये,*
*ज़मी बँट गयी, अब रहे गया आसमाँ, मेरे वतन में।*
*हर एक को बाँटा है धर्म के ठेकेदारो ने,*
*धर्म का रंग है भंग सा है चढा, मेरे वतन में।*
*जिन्हे मिटना था, वो मिट गये वतन के लिये,*
*अब राज करते है सब गधे यहाँ, मेरे वतन में।*
*सच बोलना भी गुनाह है फिरोज, चूप हो जा वरना,*
*मार डालेगा तुझे ये अंदाज ए बयाँ मेरे वतन में।*
✍ *फिरोज काझी*
© 9325964308
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