प्रेम की अलग परिभाषा गढ़ता (मुक्तक छंद रचना)

कविता (मुक्तक छंद)
शीर्षक-'प्रेम की अलग परिभाषा गढ़ता'

सारे संसार में वो जाना जाता
दिलों से रंगों का भेद मिटाता
सबके मन में बस कर मुरलीवाला
प्रेम का नया अध्याय पढ़ाता

जन्मों का बंधन जोड़े अटूट
तोड़ने से नहीं जाता टूट
हर जगह नज़र कृष्णा आए
चाहे आखिरी साँस भी जाए छूट

वो तो है सबका कन्हैया
पार लगाता सबकी नैया
रिश्ते झट से बना लेता
चाहे प्रेमी, सुत या भैया

प्रेम से करें सब उसकी भक्ति
कहलाए प्रेम तप की सी शक्ति
सारा संसार लगता अच्छा
मिलती जो कृष्ण प्रेम की शक्ति

प्रेम की अलग परिभाषा गढ़ता
गोपियों संग वो रास रचाता
रुक्मणि साथ ब्याह किया फिर भी
राधा का कृष्ण उसका नाम कहलाता

डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
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