नही बिसरा कभी मीत हमारा,
बचपन का वो प्रीत हमारा।
संग-संग मिलकर हम खेलें,
साथ-साथ झूला पर झूलें।
संग-संग घूमें ताल-तलैया,
खेल-खेल कर भूल भुलैया।
नाचें-गायें ता-ता थैया,
मेरा छोटा नन्हा भैया।
अमवा की डाली के नीचे,
मारे पत्थर तोड़े अमिया।
कच्ची अमिया के स्वाद अनूठे,
पके आम भी लगते ना मीठे।
कभी ना बिसरी वो प्रीत पुरानी,
बचपन बीता, गई जवानी।
रोज सुनाती बूढ़ी- नानी,
हम सुनतें थे नई कहानी।
एक पाई की अनमोल मिठाई,
बाँट-बाँट जो हमनें खाई।
वो मधुर स्वाद कभी ना आई,
चाहें खा लें मीठी रसमलाई।
रोज खेलें थें छुपन -छुपाई,
छोटी सी बातों पर करे लड़ाई।
रक्षा-बंधन त्योहार मनाई,
मेरी राखीं भैया की कलाई।
निश्छल बहना, प्यारा भाई,
बहना प्रीत नही बिसराई।
💐💐समाप्त💐💐 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका- शशिलता पाण्डेय
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