हम जैसी भीगी रात कोई।
देखी है तो मुझको बतला दो,
कह डालो मुझसे जज़्बात कोई।
तारे भी ख़ामोश दिखे हैं,
बरसा न बदरा कोई।
ख़ामोश घटा ने है कुछ घेरा,
ख़ामोश बहुत है रात कोई।
चलो चलें अम्बर के नीचे,
देखें चंदा कितना चुप है।
मन में है कौतूहल कैसा,
ये रैना भी कहती कुछ है।
फिर से तुम जम के बरसो,
देखनी है भीगी बरसात कोई।
देखी है क्या तुमनें बोलो,
हम जैसी भीगी रात कोई।
मिलते हो तो हो छुप जाते,
भला क्यूँ इतना हो शर्माते।
घनघोर घटाएँ फिर से गरजीं,
मन क्यूँ इतना हो भरमाते।
ठंडी ठंडी बारिश की बूंदें,
कहती हैं प्यारी बात कोई।
कल अम्बर को देखा था मैंने,
कुछ बदरी घिर आईं थीं।
कुछ हुँकार और चीख रहीं थीं,
कुछ संकुची शरमाईं थीं।
मुझको इस तरह न सताओ,
कह कर कानों में बात कोई।
देखी है क्या तुमनें बोलो,
हम जैसी भीगी रात कोई।
अनुराग बाजपेई (प्रेम)
पुत्र अमरेश बाजपेई
८१२६८२२२०२
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