'यात्रा वृतांत',लेखक खुशवंत कुमार माली जी द्वारा

यात्रा का अन्तिम पड़ाव- सिद्धेश्वर महादेव सिन्दस्थ।
गंगा-जलिया महादेव, गैनजी महाराज व गजराजा माँ का पूजन, अर्चन, ध्यानकर व आनन्द प्राप्तकर कर पुनः आने की आशा में जैसे ही आगे घरों की ओर बढ़े वैसे ही आगे बैठे सुरेश जी व अमृत जी ने सिद्धेश्वर दर्शन की इच्छा जाहिर की।जिसका एक ठोस कारण यह भी था कि अमृतजी जल्दी घर नहीं पहुँचना चाहते थे क्योंकि उन्हें अमृत इलेक्ट्रानिक्स जावाल जाना पड़ता जो उनको ग्वारा न था। वे अब आनन्द के चरम पर थे।यात्रा लम्बी होने तथा सभी की निजी जिम्मेदारियों के चलते अधिकतर अब कहीं अन्यत्र न जाकर सीधा घर पहुँचना चाहते थे। मेरे लिए यह स्थल पूर्व दर्शनीय दो स्थलों की तरह बिलकुल नवीन था।सिद्धेश्वर सिरोही जिला मुख्यालाय से करीब १० किलोमीटर की दूरी पर सिन्दरथ गाँव के पास जंगल में पहाड़ी पर स्थित शिवालय है।"दिए तले अंधेरे की भांति" यूं तो खूब घूमना हुआ,सुखद लम्बी यात्राओं के आनन्द से मनः मस्तिष्क सरोबार है पर इतना नजदीक होने पर भी यह रमणीय, दर्शनीय, सुरम्य स्थल सदैव अधूरा ही रहा। यह परमार वंश के इष्ट, आराध्य देव है। बड़ी दो बहनों के ससुराल वंशज परमार है। वे वहाँ पूजन, अर्चन के लिए जाते रहते है। बडी दीदी से सिद्धेश्वर के विषय में खूब सुना था सो ह्रदय की अभिष्ट इच्छा दर्शन लाभ की मेरी भी थी। कहते है ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। प्रभु कृपा का प्रसाद ही था जो वर्षा ऋतु में झरनों, हरियाली व अन्य नयनाभिराम दृश्यों से आकर्षित करने वाला यह स्थल आज हम सब को एक साथ दर्शन लाभ देने जा रहा था। कोरोना के कारण अधिकतर मन्दिर अभी बन्द है। इन्द्र देव भी कुछ-कुछ नाराज़ चल रहे है। सावन जा रहा है पर बरखा उस स्तर की नहीं हो रही है कि प्रकृति निखर कर परम रूप को धारण कर लें। फिर भी कोरोना के लम्बे लॉकडाउन ने प्रकृति को निखारा है। प्रदूषण कम हुआ है।प्रवीणजी ने आखिर में बोल ही दिया अगर सब की मंशा है तो चलिए बाबा के दर्शन लाभ ले ही लेते है। फिर क्या था ड्राईवर को निर्देश दिया गया कि गाड़ी सिद्धेश्वर घूमा दी जाए। काफि ऊहापोह के बाद ड्राईवर महाशय सिद्धेश्वर के लिए राजी हुए इस वादे के साथ कि दर्शन लाभ के साथ ही रवाना हो जायेंगे। कुछ ही देर में हम सब अरावली की सुरम्य वादियों में प्रकृति की गोद में बसे इस सुरम्य स्थल की तलहटी में थे।
मनोज, प्रिंस व नयन ने जल्दी से उतरकर व भागकर अपने आनन्द को बल दिया। होना भी था ये तीनों बच्चे अपने-अपने जनक की गोदी में थे।कभी- कभी गाड़ी में बैठने के लिए भी क्या खूब संघर्ष करना पड़ता है? पूछिए मत जनाब सभी सवारिओं के शरीर का आकार एक सा न होता है कोई पतला तो कोई गोलमटोल बिल्कुल मेरे जैसा होता है। पुष्करराज तीर्थ आबू की यात्रा में पीछे बैठने वाले दल में सभी सहज व व्यवस्थित शरीर के थे। लेकिन गंगाजलिया से सिद्धेश्वर की यात्रा में पूर्ववत न रहा। अब आगे बैठे कुछ यात्री पीछे इस मंशा से आए की वहाँ ज्यादा जगह खाली है सो आराम से बैठेंगे। ऐसा ही कुछ पीछे वालों ने आगे जाते हुए सोचा होगा। फिर क्या था साहब गाड़ी के धक्के और विशाल- बौने शरीरों के बीच गजब का संघर्ष चला। सब ओर से आराम की चाह और संघर्ष करती सीटें, पैर व हाथ। पैर तो दबकर जाम हो गए थे  इसलिए गाड़ी से उतरने में हमको थोड़ा समय लगा। जैसे ही बाहर निकले और जमी पर पैर रखें। अजीब अनोखा आराम महसूस हुआ। अब सिद्धेश्वर से ज्यादा खुशी दबने व न कुछले जाने के आराम की थी।
कुछ ही सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद  कम ऊँची लेकिन वनस्पति से ढ़की हुई पहाडी की चोटी पर यह शिवालय था। सभी ने मन्दिर में प्रवेश किया। निश्चित दूरी की पालना करते हुए सभी ने दर्शन लाभ लिया। अद्भुत शिवलिगं और नयनाभिराम श्रृंगार व चित्ताकर्षक दर्शन। सबकुछ आशानुरुप था। यहाँ प्राकृतिक जल स्रोत है। पूछताछ से पता चला कि भीषण गर्मी,अकाल व सूखे में भी यहाँ जल नहीं सूखता है। विज्ञान कितना भी आविष्कार कर ले ईश्वर के आगे तो नतमष्तक ही है। विश्व के ऐसे कहीं आश्चर्य है जो यहीं कहानी बयाँ करते है। कोई अज्ञात शक्ति है जो इस चराचर जगत को चलायमान बनाएं हुए है। मानव तो केवल साधक मात्र है।धर्म,कर्म व अध्यात्म ही भारत की अक्षण्णु संस्कृति में अपना अप्रतिम स्थान रखते है। छायाचित्रों का दौर एक बार फिर चला।जितने भी सुन्दर दृश्य थे अब सभी हमारे कैमरों मे कैद थे। सभी ने दल में व व्यक्तिशः खूब छायाचित्र लिए।आनन्द चरम पर था। यात्रा की थकान अब समाप्त हो चुकी थी। दर्शन लाभ ने बैठने की थकान का अंत कर दिया।जल्दी चलने के वादे के चलते हम सभी जल्दी नीचे उतरे व सिद्धेश्वर की जयकार कर गाड़ी में बैठे। अब बस घर पहुँचना शेष था। हँसते-हँसाते, गाते मुस्कुराते गाडी सिरोही की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही थी। सभी आनन्द में मग्न थे।
यात्रावृतान्तकार:
खुशवन्त कुमार माली उर्फ "राजेश" सिरोहीयाँ।

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