कवयित्री मीनू मीना सिन्हा मीनल जी द्वारा रचना (विषय- भारत की बेटी)

भारत की बेटी

मैं भारत की बेटी व्यथा किसे कह पाऊँ ?
मैं सारे जग की जननी, महिमामंडित होती हूँ।

मैं काली, मैं दुर्गा, मेेैं ही सरस्वती भी हूँ
रोकने से रुकती नहीं, आगे बढ़ती जाती हूँ।

पर हे मानव, गौर से देखो
मैं और भी क्या-क्या हूँ ?


वस्त्र उघाड़े जाते मेरे, मैं ही निर्भया भी हूँ 
बलात्कारो की पीड़ा सहती, मैं ही दामिनी भी हूँ।

केरोसिन से जली बेटियाँ, तकिये से दम घुट जाता
घर-घर पीसी, कुटी जाती, मैं भारत की बेटी हूँ।

नंगी आंखों की सरसराहट, झेलती रहती हूँ हरपल
शाम अंँधेरे लौट न पाऊँ, पता नहीं कब क्या हो कल ?

आशंकाओं की साया तले, मैं तो जीती रहती हूँ 
घर को स्वर्ग बनाने खातिर मैं तो मिटती जाती हूँ ।

पर हे मानव, गौर से देखो
मैं और भी क्या-क्या हूँ ?

दुःख पीती हूंँ, दुःख कहती हूँ,  दुःख पर ही मैं जिंदा हूँ
और बताऊँ क्या क्या तुझको, होती नहीं शर्मिंदा हूँ ।

मैं भारत की बेटी, आँसू पीकर जीती हूँ
मर्दों की इस दुनिया में डटकर ही तो रहती हूँ ।।


मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ
राँची
          ************ं

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