देश के दंश
आज भी घूमते हैं द्रोण
कभी व्यभिचार का पट्टा लगाकर,
कभी शिक्षा का श्वेत-वस्त्र लगाकर,
और,
दिल में श्यामपट्ट सा कालिख छुपाकर,
तो कभी सरकारी पुरस्कार का ठप्पा लगाकर,
और लगातार काटते जाते हैं उंगलियां,
और
अबोध निश्छल शिक्षार्थी,
काटते हैं बस दिन,
गुरु-कृपा के लिए..
पर गुरु-घंटाल बोलते रहते हैं,
"कृपा रुकी हुई है.."
बिलकुल एक टी वी वाले
'मल-मल' गुरु के जैसा !!
दीपक क्रांति
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