फर्ज रचनाकर का#डॉ अलका पाण्डेय जी के द्वारा#

शीर्षक-  फ़र्ज़ रचना कार का 

क़लमकार का फ़र्ज़  क्या ? 
आज मैं कुछ इस पर ही कहती हूँ 
मैं भी एक रचनाकार हूँ 
लिंखती हू जो मेरे आस पास घटता है !
सरकार की नीतियों पर बात करती हूँ ! 
ग़लत नीतियों को सुधारने की बात करती हूँ!!

कभी सरहद पर कभी सैनिकों पर कलम चलती है ! 
कभी भूख पर कभी किसान की दुर्दशा पर लिंखती हूँ ! !

हाँ मैं क़लमकार हूँ मेरा फ़र्ज़ 
ग़लत को ग़लत लिखू 
समाज को आईना दिखाऊ ....

कभी दंगों पर कभी जलसों पर 
कभी जात पात पर धर्म पर 
तो कभी भड़काऊ और झूठे भाषणों पर लिंखती हूँ 

क्यों न लिखू  लिखना मेरा धर्म है ! कलम की ताक़त है हमारे पास बिना लहू बहाए बुराई को मिटाते है !!

कलम से प्रहार करती हूँ 
जनता को सच् बतलाती हूँ !!

अपनी फ़िक्र करना डरना सिखा नही !
लाकडाऊन में भी कभी आराम किया नही !!

चारों तरफ़ मचा हा हा कार था 
हम रचनाकारो का ज़ोर था !!

विश्व की हालत नाज़ुक थी 
कलम हमारी गुलजार थी !!

सड़कें सुनसान थी सवारी ग़ायब थी 
बाज़ारों में सन्नाटा था ख़रीददारी बंद थी !!
तब रचनाकार की कलम चल रही थी ! 
कोरोना पर  कवियों की कवितायें पड़ रही भारी थी !!

फ़र्ज़ से कम डरा है रचनाकार 
अभावग्रस्त रहकर भी काम करता है !!

सरस्वती का पुजारी है ...धन से वंचित रहता है !
बुद्घिजीवी  की श्रेणी पाता है ! 
सर्व नाम लेखक बन कर रह जाता है !!
सहता है वक्त की मार फ़र्ज़ पुरे करता है । 
रोज़ सुहानी सुबह का इंतज़ार करता है 
हाँ वह रचनाकार है ! 
हाँ मैं रचनाकार हूँ ! 
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई

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