🌹 *_सूर्य कान्त त्रिपाठी " निराला "_* 🌹
_दिनाँक- ०८/०९/२०२०, मंगलवार_
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बंगाल प्रान्त का मेदनी पुर था ग्राम।
रामसहाय त्रिपाठी था पिता का नाम।
बचपन से ही किये दुःखो का सामना।
मातपिता साया नही शेष रही कामना।
प्रारंभिक शिक्षा राज्य में शुरू किये।
हिंदी, बंगला भाषा का ज्ञान लिये।
छायावाद के स्तम्भ भी ये कहलाये।
रूढ़ियों को तोड़कर भी दिखलाए।
नारी के लिए मुक्ति का भी प्रावधान किया।
कविताओं के जरिए नारी का सम्मान किया।
अप्सरा, निरुपमा जैसे उपन्यास भी लिखे।
नारियों के प्रेम, वीर उत्साह में आस दिखे।
समन्वय, मतवाला पत्रिका भी ये खूब निकाले।
सरोज, स्मृति, राम की शक्ति पूजा बने निराले।
कुकुमुत्ता, अपरा बेला भी थीं इनकी रचना।
खूब चली अणिमा, अर्चना और अराधना।
कविताओं में छायावादी, रहस्यवादी का समावेश।
छंदमुक्तता,औऱ मान्यताओं के प्रति भी रहा आवेश।
अंत में रचनायें करते हुए बने प्रयागवासी।
यहीं सन 1961 में हुए थे गोलोकवासी।
अपनी कलम से सबके दिल में छाप बनाई।
गीता भी उनके सम्मान में हैं शीश झुकाई।
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✍🏻
_गीता पांडेय_
_रायबरेली-उत्तरप्रदेश_
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