चलते चल*#प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"* जी द्वारा बेहतरीन रचना#

*चलते चल* 
*स्वरचित कविता*
पैदल ही सही चलते चल।
देर ना कर पथ पे बढ़ते चल।
जीवन में कठिनाई ही तो
 सिखाती है मजबूती से उठना।
छोड़ नही प्यारे कर्मठ होकर 
तू अपना कर्म करते चल।।

हौसले की उड़ान तू  भर के देख।
होता है सम्भव तो कर के देख।
दुनिया के बातों में ना उलझ तू।
 मन्जिल की ओर बढ़ते चल।।

सूरज चंदा तारे ये भी तो 
समय पर ही निकलते है। 
पँछी भी नील गगन में  
समय से उड़ते है।
समय से दूरी मत बढ़ा
 समय के साथ चलते चल।।

खोया हुआ तुझको मान पाना है।
अँधेरे में भी रौशन कर जाना है।
सोच के कदम बढ़ा ये जिंदगी है।
इस कर्म यज्ञ में स्नान करते चल।।

 *प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"*

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