अब कोरोना के साये
में ही लोग जीने और
मरने लगे है ,
ऊपर से मुस्कुराहट तो है
लेकिन
ये साये
भीतर ही भीतर
डराने लगे है ।
डर तो डर होता है
वही ज्यादा डरता है जो
अपने आप को निडर कहता है ।
पहले चिंतन क्षितिज के
पार तक हुआ करता
था , अब उसकी
जगह चिन्ता व्याप्त है ,
आप जान पाते है
इन दिनों कि
कौन कितना मुस्कुराता है ?
मास्क के भीतर
हर कोई अपना गम
छिपाता है !
अब हर बस्ती में
एक उदासी है ,
सच कहता हूं , जिंदगी
वक्त कि दासी
है !!
वक्त मुस्कुराएगा तब
सब मुस्कुरायेंगे ,
हौसला रखिये
सब मिलकर
एक दिन कोरोना
को हराएंगे ,
फिर जिंदगी
मुस्कुराएगी इस
मास्क से बाहर आकर ।
डॉ . जयप्रकाश नागला
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