खुश रहने के लिए करते है।#प्रकाश कुमार मधुबनी जी के द्वारा शानदार व्यंग्यात्मक रचना#


*खुश रहने के लिए करते है।।*

इल्जाम लगाकर एक दूजे
 पर ख़ुदको शुकून देते है।
नए जमाने में हम सब 
अब ऐसे ही जी लेते है।।

कभी करते खूब बुराई।
कभी बाते बहुत बनाते है।
कभी जो हो केवल गुस्सा
बोलचाल बन्द कर देते है।।

वक्त पर कहते जान हो मेरे।
काम जाने पर जान लेते है।
इतनी मनगढ़त कहानी बनाते।
की सामने वाला मान लेते है।।

अभी ये तो कल वो होता।
 दे हम धोका खुश जबकि
दूसरा दे तो कोने में बैठ रोते है।
अन्तः आत्मा जाने सबकुछ
फिरभी हम चैन से सोते है।।

शर्म हया सब बेच खाये है।
हम अबतो नाटक करते है।।
पीछे खोदते एकदूजे हेतु खाई।
आगे मगर की आशु रो लेते है।।

जो जितना शातिर उतना खुश है
 एक दूसरे को मामू बनाकर।
अपने को शहनशाह कहते है
खुश होते खूब जाल फैलाकर।।

ईमानदारी अब एक है पहनावा।
जिसको पहन लाखों पाप करते है।
आगे से रहते सर झुकाकर किन्तु
पीछे पीछे षड्यंत्र रचा करते है।।

किसको कौन कहे क्या समझाये।
अबतो बात करने से भी डरते है।
नए जवाने के नए मूर्ति है हम
हर रोज हम युही मरते रहते है।।

 प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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