शिक्षक#मनीष चन्द्र प्रसाद* जी द्वारा शानदार रचना#

*(एक खूबसूरत कविता सभी शिक्षकों के लिए)*

*मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?*
*आपके प्रश्न का सटीक उत्तर* 
         *आपका मौन है।*
*शिक्षक न पद है, न पेशा है,*
                     *न व्यवसाय है ।*
*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*
                         *कोई आय हैं।।*
 *शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।*                                                    *गीता में  उपदेशित* 
         *"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*    
    
        *शिक्षक एक प्रवाह है ।*
        *मंज़िल नहीं राह  है ।।*    
          *शिक्षक      पवित्र   है।*      
        *महक फैलाने वाला इत्र है*
 *शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।*
*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*

*वह डालता है चांद सितारों ,*
*तक को तुम्हारी झोली में।* 
*वह बोलता है बिल्कुल,* 
*तुम्हारी  बोली   में।।*
 *वह कभी मित्र,*
        *कभी मां तो ,*
             *कभी पिता का हाथ है ।*
*साथ ना रहते हुए भी,*
            
 *ताउम्र का साथ है।।*
 
*वह नायक ,खलनायक ,*
*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*
 *तुम्हारे   लिए  न  जाने,*
 *कितने  मुखौटे   लगाता है।।*

*इतने मुखौटों के बाद भी,*
 *वह   समभाव  है ।*
*क्योंकि यही तो उसका,*
 *सहज    स्वभाव है ।।*
            
*शिक्षक कबीर के गोविंद सा,*
                   *बहुत ऊंचा है ।*
  *कहो भला कौन,* 
              *उस तक पहुंचा है ।।*
*वह न वृक्ष है ,*
      *न पत्तियां है,*
                *न फल है।*
           *वह केवल खाद है।*
 *वह खाद बनकर,*
             *हजारों को पनपाता है।*
 *और खुद मिट कर,*
             *उन सब में लहराता है।।*

 *शिक्षक एक विचार है।*
 *दर्पण है ,   संस्कार है ।।*

 *शिक्षक न दीपक है,*
                  *न बाती है,*
                         *न रोशनी है।*
 *वह स्निग्ध  तेल है।*
          *क्योंकि उसी पर,*
 *दीपक का सारा खेल है।।*

*शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की*
               *प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*
*कैसे कह सकते हो,*
            *कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*
 
*शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी*
          *तो कभी विश्वामित्र है ।*
 *गुरु और शिष्य की*
       *प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*

 *शिक्षक  भाषा का मर्म है ।*
*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*

*साक्षी  और    साक्ष्य है ।*
*चिर  अन्वेषित   लक्ष्य  है ।।*

*शिक्षक अनुभूत सत्य है।*
*स्वयं  एक   तथ्य है।।*

 *शिक्षक ऊसर को*
           *उर्वरा करने की हिम्मत है।*
 
*स्व की आहुतियों के द्वारा ,*
         *पर के विकास की कीमत है।।*    *वह इंद्रधनुष है ,*

*जिसमें सभी रंग है।* 
*कभी सागर है,*      
       *कभी तरंग है।।*

 *वह रोज़ छोटे - छोटे* 
             *सपनों से मिलता है ।*
*मानो उनके बहाने* 
                *स्वयं खिलता  है !*

*वह राष्ट्रपति होकर भी,*
       *पहले शिक्षक होने का गौरव है।*
 *वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,*
       *कभी न मिटने वाली सौरभ है।*

*बदलते परिवेश की आंधियों में ,*
         *अपनी उड़ान को* 
  *जिंदा रखने वाली पतंग है।*
 *अनगढ़ और  बिखरे* 
        *विचारों के दौर में,*
   *मात्राओं के दायरे में बद्ध,*
*भावों को अभिव्यक्त*
        *करने वाला छंद है। ।*

*हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें*
 *सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।*
*तुम्हारे आसपास जैसी ही* 
      *कोई सूरत नजर आएगी  ।।*

*लेकिन यकीन मानो जब वह,*
         *अपनी भूमिका में होता है।*
 *तब जमीन का होकर भी,*
         *वह आसमान सा होता है।।*

 *अगर चाहते हो उसे जानना ।*
 *ठीक - ठीक     पहचानना ।।*

*तो सारे पूर्वाग्रहों को ,*
          *मिट्टी में गाड़ दो।*
*अपनी आस्तीन पे लगी ,*
    *अहम् की रेत  झाड़ दो।।*
 *फाड़ दो वे पन्ने जिन में,*
           *बेतुकी शिकायतें हैं।*
 *उखाड़ दो वे जड़े ,*
    *जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।*

 *फिर वह धीरे-धीरे स्वतः*
              *समझ आने लगेगा*
*अपने सत्य स्वरूप के साथ,*
   *तुम में समाने लगेगा।।*

_*मनीष चन्द्र प्रसाद*_
        _*माध्यमिक विज्ञान शिक्षक*_
_*उत्क्रमित उच्च विद्यालय, खोड़ि, समस्तीपुर*_
_*मो० 7903273324*_
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 *सभी शिक्षकों को समर्पित* 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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