हरि शरणम दोहे# बाबूराम सिंह कवि जी द्वारा शानदार रचना#

🌾हरि शरणम्  दोहे  🌾
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बाहर जग के जेल से , निकलन इक ही व्दार।
नर जीवन वह व्दार सुचि ,इसपर करो विचार।।
प्रभु सिवा कुछ भी नही, प्रभु को नाम अनूप।
सबकुछ है हरि ही मना, सब है हरि का रुप।।
खुश रखना भगवान को, है सच्चा सौभाग्य।
हरि को जो न पसंद है, कर दो उसका त्याग।।

निष्पक्ष निष्कपट करो ,सदा सदा व्यवहार।
देव सुयश संतोष का ,यही सकल संसार।।
परम धन संतोष सदा ,कर इसमें पछसार।
जीवन में सुनैतिकता ,बढे़ सरस सुख प्यार।।
वाणी   रचती   बाहरी ,संतों  से अनमोल।
जन मन को हरिमय बना,खोले सच की पोल।।

रहकर जीवन मूल्य में ,छोड़ और की चाह।
सादा सरल स्वाभाव ही ,जीवन कर निर्वाह।।
निर्मल हो जीवन सदा ,निज मन को नित मोच।
जीवन में कुछ भी करो ,अन्त समय को सोच।।
निज स्वार्थ और लोभ से,हृदय बने कठोर।
बचकर इससे रह मना ,यही पाप है घोर ।।

तत्पर हो हरि मिलन को,ले मन उज्वल आश।
बनकर  रह  हरदम  मना, प्रभु दासानुदास।।
सदा  एक  रंग  रुप रस,रहता सत्य समान ।
एक  मात्र  हैं  सदगुरु ,गुरु  रुप भगवान।।
हरिअमूल्य की खोजमें,तज जग भोग विलाप।
मिटता  आपा भाव  जब ,तब हो प्रभू मिलाप।।

नो निधियों मय हरि भजन,तन के अन्दर जान।
आश सदा हरि मिलन की ,लो अपने मन ठान।।
हरि कृपा से लखो अलख,अगम सभ्यता पाय।
भक्ति  सुधा  हरि  सत्य  में,रे मन सदा समाय।।
निर्मल  अनुभव  आन्तरिक ,नाम शब्द है सार।
आत्मा का सच्चा भजन,नर जीवन आधार।।

अनुभवगम्य सुरम्य है ,निज अन्दर  सुचिराम।
मन  मायाक्ष से  है परे ,प्रभु का सच्चा नाम ।
मिले नही बिन हरिकृपा ,सच्चा नाम प्रकाश।
सत्यनाम से ही मना ,तम  गम  हम हो नाश।।
जड़  चेतन  माया  सदा,जगत नचावे नाच।
रहो प्रभु आश्रित मना ,लगे न इसका आँच।।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
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