मांँ कामाख्या ! करूंँ प्रणाम
मांँ मैं आई तेरे द्वार कर दो मेरा भी उद्धार।
मैं क्या देखूंँ , मैं क्या जानूंँ सुन लो मेरी भी पुकार।।
क्षमा करो माँ मेरी गलती पापों से अब दूर करो मांँ।
मैं हूंँ एक नादान बालिका अर्पित करती हूंँ सबकुछ मांँ।।
तू जननी, तू जगत्ध्दारिणी मैं हूंँ नौका पाप भरी।
पार लगा दो मेरी माता डूब जाऊंँगी खड़ी-खड़ी।।
तेरी कृपा से जीवन पाया, खोया अपने पापों से।
शरणागत मैं होती हूँ मांँ ,बच जाऊंँगी श्रापों से ।।
आई कहाँ से जाऊंँ कहाँ समझ न पाई अब तक मैं।
दया की दृष्टि पाऊंँ तेरी सारा जग पा जाऊंँ मैं।।
अब तो मुझसे लगन लगी है जिद अपनी निभा पाऊंँ मैं।
दया करो हे मेरी माता, इस भव से तर जाऊंँ मैं।।
-कामाख्या परिसर
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