कवयित्री सीमा तोमर जी द्वारा 'हांँ मै जिन्दा हूँ' विषय पर रचना

स्वरचित एवं मौलिक 
शीर्षक -हांँ मै जिन्दा हूँ
हैरान है वो ये देखकर कि में आज भी उनके बगैर ज़िंदा हूँ 
और  तो शिकायत नही  जिंदगी से 
बस अपने आप से हीं  शर्मिन्दा हू 
हैरान है वो ये देखकर  कि में उनके बगैर भी ज़िंदा हूँ 
वो तो जैसे मान हीं  बैठे थे ' खुदा 'खुद को 
मगर में  तो अपनी 'इंसानियत' पर ज़िंदा हूँँ 
हैरान है वो ये देखकर कि में उनके बगैर आज भी ज़िंदा हूँ 
गुरूर हो चला था उनको शक्शियत पर अपनी 
मगर में में भी अपने' वजूद' पर आमादा हूँ 
हैरान है वो ये देखकर कि में आज भी उनके बगैर ज़िंदा हूँँ 

जिंदगी ने धीरे धीरे कई हकीकत दिखाई  मुझको 
मगर उनको अब तक भरम ये है कि में उन्ही क़े ख्वाब पर जिन्दा हूँँ 
हैरान है वो ये देखकर क़े में आज भी उनके बगैर ज़िंदा हूँँ 

कसर तो वैसे बाकी  तूने कोई छोड़ी नही मेरे एहसासो को कुचलने की 
मगर मेरा हौसला देख में इन कुचले एहसासो पर भी ज़िंदा हूँ 

हाँ फक्र है मुझको
 कि में तेरे बगैर भी जिन्दा हूँँ
सीमा तोमर 
ग़ाज़ियाबाद

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