कवयित्री डॉ.लता जी द्वारा रचना “विधा गज़ल"

विधा: ग़ज़ल

ज़िन्दगी की तपती धूप में चली जा रही थी मैं
छाँव की आरजू दिल में लिए चली जा रही थी मैं

मुश्किलें तो बहुत आई ज़िन्दगानी के लंबे सफ़र में
दुआओं के साये में मुश्किलें आसां किए चली जा रही थी मैं

साथ न दिया किसी ने मेरे बुरे वक़्त में मेरा
ख़ुद ही खड़ी अपनी राहों पर भली जा रही थी मैं

बढ़ने की चाह में धोखे मिले कदम-कदम पर कई
अज़नबी ज़माने की भीड़ में यूँ छली जा रही थी मैं

अब न रुकूँगी किसी की काफ़िर सोच के दायरे में बंधकर
क़ामयाबी की तम्मना दिल में लिए चली जा रही थी मैं

डॉ. लता(हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
स्व:रचित एवं मौलिक
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