शीर्षक - सियासत
सियासत ने हमको इतना मजबूर कर दिया ।
अपनों को अपनों से दूर कर दिया ।
कल तक जो एक दूसरे के आँखों के नूर थे ।
उनको इन्सानियत से भी दूर कर दिया ।
अब सियासत में हर जगह खोट है।
हम इन्सान नही सिर्फ वोट है।
अब तो सियायत सिर्फ सत्ता के लिए होती है ।
सत्ता के बाद तो सिर्फ नोट ही नोट है ।
समाज सेवा से नेता को क्या करना ।
बटवारे के दर्द को इनको क्या सहना ।
शाम दाम दंड भेद, जैसे भी हो।
सिर्फ इन्हें सत्ता में ही रहना ।
सर्वमौलिक अधिकार सुरक्षित
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