*बेरोजगारी*
बढ़ती महंगाई बेरोजगारी भी बढ़ाई,
क्या करें हम इसका?
हमें कुछ भी समझ ना आई।
पढ़ा लिखा दिया बच्चों को,
डिग्री सारी धरी रह गई ,
देखो कैसे बेरोजगारी
सबके सर पर अड़ी रह गई।
भ्रष्टाचार का बोलबाला,
जब तक ना होगा कम,
बेरोजगारी का मामला,
और भी हो जाएगा अधम।
जाने कितनों के प्राण गए,
इस बेरोजगार के लपट में,
जाने कितने घर टूटे,
इसके चपेट में।
बेरोजगारी एक जंग है,
जिसे जीतना जरूरी है,
गर हार गए इस जंग को,
तो हर ख्वाहिश अधूरी है।
मां-बाप के सपनों को
पूरा करके दिखाना है,
इस भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को,
हम युवाओं को ही मिटाना है।
स्वरचित कविता
प्रियंका साव
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