कवि नारायण प्रसाद जी द्वारा रचना “सच मे कितना गज़ब होता”

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शीर्षक-  सच में कितना गज़ब होता।


मंदिर,मस्जिद न कोई मजहब होता ।
ईश्वर, अल्लाह न रब होता।
माता -पिता ही सब होता। 
सच में कितना गज़ब होता।।

माता-पिता से न कोई अलग होता।
चोर-डकैत और न ठग होता।
मानवता से भरा हर डग (कदम) होता।
सच में कितना गज़ब होता।।


हीरा-मोती और न कोई नग होता।
प्रेम-दया से भरा सब होता।
स्वतंत्र जीव-जंतु और खग होता।
सच में कितना गज़ब होता।।

स्वच्छ धरती और नभ होता।
किसी को न कोई गरब (गर्व)होता ।
एकता ,शांति का परब (पर्व)होता।
सच में कितना गज़ब होता।।


अनुशासन से भरा हर मग (मार्ग) होता।
कहीं न कोई ज़रब (प्रहार)होता।
सब के अंदर अदब (विनय)होता।
सच में कितना गज़ब होता ।।

सब का काज सहज होता।
तीर तलवार न खड़्ग होता।
शांति से भरा ये जग होता।
सच में कितना गज़ब होता।।

     नारायण प्रसाद
    आगेसरा (अरकार)
  जिला -दुर्ग छतीसगढ़
(स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना)

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