बदलाव मंच अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय
शीर्षक- सच में कितना गज़ब होता।
मंदिर,मस्जिद न कोई मजहब होता ।
ईश्वर, अल्लाह न रब होता।
माता -पिता ही सब होता।
सच में कितना गज़ब होता।।
माता-पिता से न कोई अलग होता।
चोर-डकैत और न ठग होता।
मानवता से भरा हर डग (कदम) होता।
सच में कितना गज़ब होता।।
हीरा-मोती और न कोई नग होता।
प्रेम-दया से भरा सब होता।
स्वतंत्र जीव-जंतु और खग होता।
सच में कितना गज़ब होता।।
स्वच्छ धरती और नभ होता।
किसी को न कोई गरब (गर्व)होता ।
एकता ,शांति का परब (पर्व)होता।
सच में कितना गज़ब होता।।
अनुशासन से भरा हर मग (मार्ग) होता।
कहीं न कोई ज़रब (प्रहार)होता।
सब के अंदर अदब (विनय)होता।
सच में कितना गज़ब होता ।।
सब का काज सहज होता।
तीर तलवार न खड़्ग होता।
शांति से भरा ये जग होता।
सच में कितना गज़ब होता।।
नारायण प्रसाद
आगेसरा (अरकार)
जिला -दुर्ग छतीसगढ़
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