बदलाव मंच अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय
शीर्षक - बेटियाँ
'माँ' की तो सखी,सहेली होती है बेटियाँ।
कभी तो अनबुझ पहेली होती है बेटियाँ।
माता - पिता की ताज होती है बेटियाँ ।
घर परिवार की लाज होती है बेटियाँ।
पिता जी की ख़ास होती है बेटियाँ।
खुशी की एहसास होती है बेटियाँ।
देश की साख होती है बेटियाँ ।
सच में बेबाक होती है बेटियाँ।
मिट्टी के मटका सी नाजुक होती है बेटियाँ।
फूल सी कोमल होती है बेटियाँ।
जाने कितने दर्द सहती है बेटियाँ।
फिर भी कुछ नहीं कहती है बेटियाँ।
मन लगा कर पढ़ती है बेटियाँ।
दो परिवार को जोड़ती है बेटियाँ।
सड़क से संसद तक पहुँची है बेटियाँ।
धरती से चाँद तक भी पहुँची है बेटियाँ।
नारायण प्रसाद
आगेसरा(अरकार)
जिला-दुर्ग छत्तीसगढ़
दिनांक-11/10/2010
( स्वरचित रचना)
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