शीर्षक - प्रतिज्ञा
जब तक शैतानों से छीन न लूं अपना प्यारा कश्मीर शेष
तब तक पल पल रचूंगा महाकाल सा प्रलयंकारी तांडव अनिमेष
मैं अश्विनि कुमार बनूंगा आजीवन नहीं कटाऊंगा अपने केश
पापी दैत्यों का धरा पर बचने न दूंगा कोई अवशेष
अपने शरीर का सारंग बनाकर बूंद बूंद रक्त जलाऊंगा
नव दधीचि बन अपनी सारी अस्थि गलाऊंगा
मेरे बज्र वक्ष से जो टकरायेगा चूर चूर हो जायेगा
पाक - चीन बस चमगादड़ बन कर रह जायेगा
ड्रेगान जब शेषनाग से टकरायेगा धरा व्योम हिल जायेगा
हम इतिहास भूगोल बदल देंगे दर्प तुम्हारा मिट्टी में मिल जायेगा
जो हमारे तेज से झुलस रहे देश वही हमें दे रहे उपदेश
मैं भुजा उठा कर प्रण करता हूं बदलूंगा यह सारा परिवेश
पी ओ के हो या हो अक्साई चिन हैं हमारे ही हैं भाग शेष
सुनते ही पी ओ के तन मन झंकृत हो जाता श्वासों में भर जाता आवेश
सम्पूर्ण कश्मीर हमारा है जग को बतलाना अब कुछ नहीं शेष
भारत माता के चरणों में अर्पित करना है अभीष्ट निशेष
जो अभी गला फाड़ फाड़ कर रोते हैं हम दंश उन्हीं के पुरखों का झेल रहे
शब्दों की जो जुगाली करते दुश्मन देशों से पेंग बढ़ाकर वे भारत से हैं खेल रहे
जग को हम बतला देंगें हम अपराजेय हैं हमारे रोम रोम में पौरुष है
हम कालजयी रणरंग धीर हैं हम में भरा शौर्य पराक्रम आक्रोश है
कथनी करनी में साम्य हमारे महाकाल का धमनी में बहे रुधिर है
हमारे राम कृष्ण शिवा राणा से नायक हैं जिनका यश गान सदा स्थिर है
जब तक शैतानों से छीन न लूं अपना प्यारा कश्मीर शेष
तब तक पल पल रचूंगा महाकाल सा प्रलयंकारी तांडव अनिमेष
वन्दे मातरम्
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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