कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी "प्रचंड" जी द्वारा 'हमसफर' विषय पर रचना

*_शीर्षक- हमसफ़र_*


_ये मेरे हमसफर साथी हाथ बढ़ाना रे।_
_तुझसे  मेरा  वादा है दिल मिलाना रे।।_


_तू मेरा साया है तू ही मेरे अभिमान।_
_दर-बदर घूमकर देखा तू ही सम्मान।।_
_मुझ पर गर संकट आये तो हटाना रे।_
_ऐ मेरे हमसफर साथी हाथ बढ़ाना रे।।_


_नए  पथ  का  मैं  पथिक  चल  पड़ा हूँ।_
_ज़िदंगी की दौड़ में नए मोड़ पे खड़ा हूँ।।_
_अंतिम छोर तक जाऊं साहस बंधाना रे।_
_ऐ मेरे हमसफ़र साथी हाथ बढ़ाना रे।।_


_कदम कदम पर षड्यंत्र रूपी जाल है।_
_मन कुंठित जग में सब तो विकराल है।।_
_कलयुग के सब जंजाल से बचाना रे।_
_ऐ मेरे हमसफ़र साथी हाथ बढ़ाना रे।।_


_मुझे सामर्थ्य नही है जग से लड़ने का।_
_आस मेरी भी है सिंहासन चढ़ने का।।_
_शपथ से कहूँ सदा मेरा साथ निभाना रे।_
_ऐ मेरे हमसफ़र साथी हाथ बढ़ाना रे।।_


_स्वप्न सजाए तो पहले तू ही आ जाना।_
_मैं बहुत मिस करता हूँ तू नही जाना।।_
_मेरी नींद खुले तो पहले दर्शन दे जाना रे।_
_ऐ मेरे हमसफ़र साथी हाथ बढ़ाना रे।।_

                        
       _कृष्णा सेन्दल तेजस्वी "प्रचंड"_
                    _राजगढ़ म.प्र._

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