शीर्षक - विजयदशमी
शक्ति साधना और शस्त्र पूजन
शक्ति साधना पूर्ण हुई अब शस्त्रों से श्रृंगार रचूंगा
शास्त्रों से शिक्षा लेकर नव नूतन इतिहास रचूंगा
जब जब विपदा मातृभूमि पर आयेगी ,असुरी वृत्ति जलाऊंगा
दशाननी नाभि से अमृत कुछ छिटक गया था, समूल उसे जलाऊंगा
हे राम तुमने त्रेता में आकर दमकाया था दिव्य कर्तव्य दिवाकर
कृष्ण ने द्वापर में गांडीव थमाया था अर्जुन को गीता का संदेश सुनाकर
मैं भी सारी दैत्य वृत्तियां दूर भगाऊंगा नव दुर्गा की आभा पाकर
सत्यं शिवम् सुंदरम स्वर गूंजेगा शिव- शक्ति की प्रभा पाकर
खुलेगा शिव का नेत्र तीसरा मिलेगी उसमें मां की शक्ति प्रलयंकर
तांडव की भीषण लपटों से भस्म करेंगे सभी अमंगल शिवशंकर
बसुधा पर भारत के जितने भी अरि होंगे , सब हो जायेंगे क्षार - क्षार
अमर शहीदों की यश गाथा गाकर भारत अब युद्ध करेगा आर- पार
सुलग रहा है पावक प्रचंड तप कर निकलेगा भारत का स्वर्ण विमान
विश्व विभीषिका को देकर विराम नील गगन में विचरेगा भारत का स्वर्ण विहान
हम करेंगे सबका मंगल जग गायेगा भारत का जय जय गान
धरा गगन में गूंजेगा भारत का अभिमान भारत का अभिमान
शक्ति साधना पूर्ण हुई अब शस्त्रों से श्रृंगार रचूंगा
शास्त्रों से शिक्षा लेकर नव नूतन इतिहास रचूंगा
वन्दे मातरम्
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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