कवयित्री प्रीति पाण्डेय जी द्वारा रचना “सुन मेरी गुड़िया जरा”

सुन मेरी गुड़िया जरा, 
सुन मेरी लाडो जरा.....
मैं हूँ तेरी माँ,,,, 
तू ही मेरी जान है तू ही मेरी शान है....
मेरी हूँ तेरी माँ.... 
कैसे छोड़ू मैं तुझे कामयाबी की डगर, राह में हैं भेड़िये तुझपे डाले हैं नजर,,,,,, 
तू अभी अंजान है, ना तुझे कुछ भान है,,,,,, 
मैं हूँ तेरी माँ.... 
मैंने तुझको है बड़े नाजों से पाला यहाँ ,अब डरी हूँ ना है कोई तेरा रखवाला यहाँ,,,, 
तू स्वयं को जान ले ,खुद को तू पहचान ले ,...
मैं हूँ तेरी माँ .......
पापियों पे वार कर उनकी छाती फाड़ दे, बन जा तू चंडी यहाँ वहशियों गाड़ दे,,,,, 
तू ही कुल का मान है, मुझको ये अभिमान है ,मैं हूँ तेरी माँ ..   
 ना ही कोई कृष्ण है ,ना ही कोई राम है, स्वार्थी हैं सब यहाँ, ना कोई निष्काम है, तू स्वयं ही रण उतर, काट दे दुश्मन का सर ,..
 मैं हूँ तेरी माँ ..... 

प्रीति पान्डेय

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