मंच को नमन
शीर्षक - साजन का दीदार
पड़ने कभी न दे घर में दरार
नित उठ करें साजन का दीदार
तन मन सब अर्पण कर देती है
रूखा सूखा हंस खा लेती है
सुख में दुख में साथ निभाती है
गम का सागर बढ़ पी लेती हैं
प्राण से बढ़कर करती हैं प्यार
नित उठ करें साजन का दीदार
जेठ दोपहरी घबराती है
पूस की रात कपकापाती है
घर फूल के सम महकाती हैं
करती है बढ़ चढ़कर सत्कार
नित उठ करें साजन का दीदार
प्रिय, प्रिय के लिए रखें उपवास
कभी सह न सके प्रिय का उपहास
करें ईश पहले साजन सेवा
धैर्य का गाना गाए इतिहास
अपने नहीं मांगती अधिकार
नित उठ करें साजन का दीदार
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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