*स्वरचित मुक्तक*
जिंदगी में अभी ख्वाब अधूरा है।
पल पल का अभी हिसाब अधूरा है।।
सब कुछ कहाँ सीख लिया हूँ ए जिंदगी।
अभी कई प्रश्नों का जवाब अधूरा है।।
मौत के आग़ोश में सोने से पहले।
इस लोक को छोड़ उस लोक का होने से पहले।।
कर्म के रास्ते बना राष्ट्र के काम आना है।
क्योंकि इस भूमि के कर्ज बाकी है मरने से पहले।।
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