कवि लेफ्टिनेंट पुष्कर शुक्ला जी द्वारा 'वो वादा' विषय पर रचना

*"वो अपना वादा निभाकर चले गए"*


मैं   सोया  था   मुझे  जगाकर   चले  गए,
वो   अपना   वादा  निभाकर   चले   गए।

कुछ  भी  हों,  कैसे  भी  हों,   कुबूल  हैं,
वो    तो    हमारा    दिल   चुराकर   गए।

हंसाते   थे    जो   अपने   अक्सर   हमें,
आज     वही     लोग     रुलाकर    गए।

जो  कहते  थे  हम  चलेंगे  साथ  हमेशा,
वही  लोग  हमसे    हाथ   छुड़ाकर  गए।

पढ़ा    न     जो    किताबों    में    हमने,
वो     ऐसा    भी   पाठ    पढ़ाकर   गए।

उन्हें   हमसे   इश्क   नहीं    नफरत   है,
कुछ  ऐसे भी  दस्तावेज  दिखाकर  गए।

कुछ  कहना  था  मुझसे  उनको  शायद,
वो अपने सीने में एक  राज दबाकर गए।

लेफ्टिनेंट पुष्कर शुक्ला

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