शरदोत्सव / गोपी गीत /
मेरे मोहन मेरे प्यारे , आ जाओ अब साबरे ।
तुमनेहि तो वंशी को बजाई, ले लेकर मम नावरे ।।
वन वन में मैं भटक रही हूँ, कहा छिपे हो आ जाओ ।
मैं भी नाचू तुम भी नाचो, मैं गाऊ संग तुम गाओ ।
मैं पागल तुम बिन हो गयी हूँ , तुम हो गये बावरे ।..............१
लता पता से पता पूछती , कोई पता न बता रहा ।
अति कोमल है चरन आपके, यही भय अब सता रहा ।
कुश कंटकमय मारग है यह , माधव मा धव धावरे ।.............२
तेरी कथा सुधा है प्यारे , तप्त हृदय को शीतल करती ।
तेरे प्यारे प्रेमी जन के , उर में आकर अमृत भरती ।।
मक्खन प्रिय मन मोहन प्यारे , कहा छिपे हो साबरे ।.................३
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है ।
राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी उ प्र
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