शशिलता पाण्डेय जी द्वारा बेहतरीन रचना#

कामवाली बाई
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कामवाली बाई बनी हर घर की जरूरत,
घर में काम के लिए नहीं समय किसी के पास।
कामकाजी पति-पत्नी को नही फुरसत,
हर घरेलू कामों के लिए अब कामवाली खास।
झाड़ू-पोछा बर्तन के लिए कामवाली जरूरी,
इंतजार में कामवाली के लगती सबको आस।
प्रतिस्पर्धा की दौड़ स्तरीय जीवन की चाहत,
नौकरीपेशा नारी को तो कामवाली पर विश्वास।
बिना कामवाली बाई के जिन्दगी हुई अधूरी।
सुबह-सुबह जब होता दफ्तर जाने का झमेला,
बर्तन-वाशन झाड़ू-पोंछा घर के कामो की धुरी।
कामवाली ने किया साफ झटपट घर का मैला,
कुछ निश्चित तनख्वाह पर देती सहयोग जरूरी।
नारी स्वालंबी बनकर भी घर मे होती नही अकेली,
कामवाली बाई के बलपर घर-बाहर की जिम्मेदारी।
अपने परिजन जैसी सुख-दुख की बनती वो सहेली,
कामवाली को भी थोड़ी राहत गरीबी और मजबूरी।
भले गरीबी और मजबूरी की होती मारी कामवाली,
पर अपने परिश्रम से कम करती सबकी दूरी।
कुछ पैसों की खातिर नहीं कभी अपना मुँह वो खोली,
आधुनिक जीवन अब कामवाली बाई के बिना अधूरी।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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