पेड़
पेड़ हमारे जीवन प्रदाता,
शुद्ध वायु और निर्मल वतावरण।
ग्रीष्मऋतु में तपती धरती,
जो थका-हारा आएं इसकी शरण ।
तरुतले ही मिले पथिक को ठाँव,
घर के श्रेष्ठजनों के जैसा व्यवहार।
चाहे शहर हो या कोई गाँव,
निर्धन-धनी या हो कोई लाचार।
ये सबको देते शीतल ठंडी छाँव,
ये ईश्वर का प्राकृतिक उपहार।
अपने वृद्धजनों के जैसा भाव,
अभिलाषित मानव ने किया।
जो कृत्य प्रकृति के अस्तित्व से,
आज का वर्तमान कल का भविष्य है।
प्रकृति से छेड़छाड़,नष्ट सारे उत्पाद,
अपने ही कर्मो का फल भोगता मनुष्य है।
काटकर पेड़ जब मानव ने सृष्टि को छेड़ा,
सौन्दर्य खतरें में पड़ी प्रकृति की।
कुदरत ने भी किया बखेड़ा,
मानव ने काट-काट कर वन-कानन।
किया निर्माण कल और कारखाने,
गगनचुम्बी इमारते और ऊँचे भवन।
मानव भूल प्रकृति की मर्यादा रेखा,
अब धरा पर घटती हरियाली।
बस मानव ने निज स्वार्थ ही देखा,
सम्पूर्ण विश्व पर आघात ये गहरा है।
नही कटेंगें पेंड़ अभी अब,
लगाया गया कड़ा उसपर पहरा है।
अब नये पेड़ लगाकर हमकों,
पर्यावरण को बचाना है।
हरे पेड़ कटवाकर हरियाली को,
जब हानि हम पहुचायेंगे।
आक्सीजन तो नहीं मिलेगा,
कार्बन-डाई को बातावरण में फैलाएँगे।
शुध्द वायु के अभाव में प्राणी,
यों ही घुट-घुट के मर जायेंगे।
जंगल काट-काट कर मानव जब,
जन-जीवन में खतरा फैलाएँगे ।
कभी आया है तूफान बवंडर ,
और कभी है कोरोना महामारी।
प्रकृति के छेड़छाड़ से करने से,
फैलेंगी हरदम एक नई बीमारी।
आओ मिलकर हम पेड़ लगाए,
इसमें है जन-जीवन की खुशहाली।
वायुमंडल शुद्ध-स्वच्छ मिलेगा,
होंगीं पेड़-पौधों में जब हरियाली।
जब काटते हम जंगल और पेड़,
नहीं आएगा मानसून समय से।
नहीं होगा भरपूर अन्न या खेती किसानी।
भूख और अकाल से लड़कर,
जन-जीवन खतरें में होगा।
जीवन-काल से पहले ही जन,
काल के गाल में समा जाएगा।
पर्यावरण बचाना बहुत ज़रूरी हमसबको,
मिलजुल करके हम बृक्ष नए लगाएंगे।
पर्यावरण सुरक्षा और जागरूकता ,
जन-जन में फैलाएँगे, पर्यावरण बचाएंगें।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका:-शशिलता पाण्डेय
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