*शीर्षक - किसान*
हो असंभव, मैं संभव करता
नहीं आराम, मैं दुःख हूँ सहता
बंजर जमी के सीने में मैं हरियाली पिरोता हूँ।
हां मैं किसान का बेटा हूँ।
वर्ष भर बारिश के इंतजार में रहता
उमस, धूप, सर्दी सब कुछ हूँ मैं सहता
न थकता कभी, न जगता न सोता हूँ।
हां मैं किसान का बेटा हूँ।
तपकर जब फसलें मुरझाएं
पेड़-पौधे, सब जन कुम्हलाएँ
देख इस तपन को न जाने क्यों मैं रोता हूँ।
हां मैं किसान का बेटा हूँ।
सब कुछ मेरा ये वर्षा संभाले
ये ऋतुएं मेरी फसलों को पाले
देखकर सावन की इन फुहारों को मैं खुशी में झूम लेता हूँ।
हाँ मैं किसान का बेटा हूँ।
*विष्णु चारग, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
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