ब्रह्मानंद गर्ग सुजल जी#2020 की यादें#

*राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता*
 
दिनांक- ३०/१२/२०२०
विषय- २०२० की यादें
विद्या - मुक्त काव्य

*प्रकृति का स्पष्ट नियम है परिवर्तन सदैव शाश्वत है* 
समयचक्र सतत चलता है 
कालचक्र मगर बदलता है 
रह जाती हैं स्मृतियाँ शेष
नये पुराने चंद अवशेष। 

प्रत्येक का अपना अपना 
आंकलन होता है
निज हित रहता केंद्र में 
अधिकांश यही होता है 
परहित भाव टूटते जा रहे
अब मर्यादाएँ बस कहावतों में हैं। 

नित्य कुछ नया घटना ही है 
नव सृजन अवश्य होना ही है 
अस्थिर भला अब क्या होना
जो अपना है वो गैर होना ही है 
भाव शून्य रहकर पा सकूं मैं 
चेतन पुरुष का परम शिखर। 

परिवर्तन सतत हुए हैं 
समय चक्र में सब प्रकट हुए हैं 
जो स्वहित से परे रहे
वो निश्चित ही अप्रिय रहे हैं 
यही पैमाना है मनुष्य के
अपने आंकलन का। 

स्मृति को स्वच्छ कर लीजिए 
नूतन नव सृजन इंतज़ार में हैं
जो गुजर चुका वो अब अतीत है 
*आइए भविष्य के सुनहरे पलों का हंसकर अभिनंदन करें।*

*ब्रह्मानंद गर्ग सुजल©*
जैसलमेर, राज. 

मौलिक/स्वलिखित/अप्रकाशित

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