जय श्री गणेश:
गणपति चले आओ-२
प्रेम से आमंत्रण हैं
तुम अगर नहीं आए
रूठ मैं यूं जाऊंगा
बप्पा गर मनाओगे
फिर नहीं मैं मानूंगा
प्रेम के मेरे दाता-२
चरण फ़ूल अर्पण है
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (1)
रिद्धि सिद्धि के दाता
साथी दिन दुखियों के
लम्बोदर गजानन तुम
साथ में यूं मूसक के
बप्पा तुम चले आना -२
भौग दिए मोदक के
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (2)
हैं पिता तुम्हारे तो
कालो के भी काल जो
भक्त के जो दाता हैं
कहते महाकाल जो
माता महाकाली के -२
साथ में ही वंदन है
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (3)
एकदंत देवा तू
चारभुजाधारी है
माथे पर तिलक सौहे
मूस की सवारी है
हैं नमन तुम्हे करते -२
प्रथम देव पूजा है
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (4)
पन फूल से सेवा
ओर लड्डू संग मेवा
भोग लगे लडूवन के
संत भी करे सेवा
हैं तू संग अंधन के -२
दे तू कोड़ी को काया
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (5)
तू सूने हैं बांझन की
देता धन तू निर्धन को
सुख तू करता हैं देवा
शांति दे वे मन को
सूर्य चंद्र शरन में है -२
किजो हर सफल सेवा
गणपति चले आओ -२
प्रेम से आमंत्रण हैं (6)
अस्तोमार की क़लम ( अभिषेक सिंह तोमर )
नरसिंहगढ़, राजगढ़, म. प्र.
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