नई शिक्षा नीति# गीतापाण्डेय , अपराजिता द्वारा अद्वितीय रचना

राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच को नमन
 प्रतियोगिता के अनुसार
 शीर्षक नई शिक्षा नीति

  1986 में शिक्षा नीति पर हुआ था मंथन।
1992 में फिर इस नीति में हुआ था संशोधन।

 34 वर्षों बाद नई शिक्षा नीति फिर आई है।
हम सबके लिए यह शुभ अवसर को लाई है।

पुरानी शिक्षा नीति को झेलना हमारी थी मजबूरी।
पूर्व इसरो प्रमुख ने इस शिक्षा नीति को दी मंजूरी।

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत तमाम आई योजनाएं।
इसको अपना कर नए तरीके से हम सफल बनाएं।

 5 *3*3*4 के नियम को हम सब अपनाएं।
इसी के अनुसार पाठ्यक्रम को हम पढ़ाएं।

प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा पढ़ा नींव मजबूत बनाये।
उच्च प्राथमिक स्तर पर उनके ज्ञान को हम बढ़ाएं।

 नव से बारहवी तक सेमेस्टर में ही होगी परीक्षाएं।
रजनी कि नहीं समझने की प्रक्रिया को हम बढ़ाएं।

बच्चों के प्रदर्शन मनोविश्लेषण पर होगा चयन।
 स्नातक स्तर पर वर्षा अनुसार होगा उनका उन्नयन।

शिक्षा से दूर रहे बच्चों को भी मुख्यधारा में जोड़ना
उनको जागृत कर फिर से शिक्षा की तरफ है उन्हें मोड़ना।

12 तक के बच्चे अनिवार्य शिक्षा ग्रहण करेंगे।
उसके बाद ही वे स्नातक शिक्षा के लिए आगे बढ़ेंगे।

 राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय भाषाओं को भी सुनना।
संस्कृत भाषा को भी एक विकल्प के रूप में चुनना।

स्नातक स्तर पर बीच में पढ़ाई छोड़ने का समाधान।
प्रति वर्ष का अंक पत्र देकर दूर होगा यह व्यवधान।

मानव संसाधन विकास का नाम बदल दिया गया।
वर्तमान में उसका नाम शिक्षा मंत्रालय किया गया।

नई शिक्षा नीति में तरह-तरह के है प्रावधान।
छात्र हित की हर समस्या का इसमें है समाधान।

नई शिक्षा नीति को हम सब मिलकर अपनाएं।
देश को मजबूत बनाने के लिए आगे हम आए।


 स्वरचित व मौलिक
गीतापाण्डेय , अपराजिता रायबरेली उत्तर प्रदेश

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