बाबूराम सिंह कवि जी द्वारा अद्वितीय रचना#गंगा#

ॅजयति-जयति जग पावनी गंगा
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शुचि सौभाग्य शुभ लावनी गंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

जल पियूष सम अति गुणकारी।
लाई  लाज  सब   मिटै  बिमारी ।
नित   मंजन   स्नान    पान   से  ।
जीवन  बन  जाता   अविकारी।।

आगम  निगम  हो  जाता  चंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

एक   बूंद  जल  से  ही  तेरे  ।
कट  जाते   माँ   नर्क  घनेरे ।
राज सर्व खुशियों का तुझमें ।
पाय   निहाल   होते  बहुतेरे ।।

माँ   तेरो  अति   सुचि  उत्संगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

दुर्गुण जन  मानस  से  हटाती ।
ताप - पाप अभिशाप मिटाती।।
बंधन काट  लख  चौरासी  का ।
जन -जन को बैकुण्ठ दिलाती।।
 
सब  पातक  पुंज नसावनी गंगा।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

अनायास दरस -परस हो जाता।
माँ उसका भी उत्कर्ष हो जाता ।।
नाम उच्चारण चिन्तन मनन से।
भव  निधी   मानव   तर  जाता ।।

भस्मी  भूत   कर  भय  अभंगा  ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

साधु   सन्त   योगी  सन्यासी  ।
सेवत   हर  -हर  गंगे   काशी ।।
ब्रह्म कमंडल विष्णु चरण की।
हो  मईया  महा  पावन  राशी।।

प्रेरित     कर     देती    सत्संगा  ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

गीता  गायत्री   गंगा  गो  माता ।
शरण तिहारी  जो कोई  आता।।
प्रेम  श्रध्दा   विश्वास  आस  से ।
मनवांछित सब  कुछ पा जाता।।

रंग   माँ  "बाबूराम " निज   रंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला-गोपालगंज (बिहार )
पिन-८४१५०८
मो०नं-९५७२१०५०३२
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