ॅजयति-जयति जग पावनी गंगा
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शुचि सौभाग्य शुभ लावनी गंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
जल पियूष सम अति गुणकारी।
लाई लाज सब मिटै बिमारी ।
नित मंजन स्नान पान से ।
जीवन बन जाता अविकारी।।
आगम निगम हो जाता चंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
एक बूंद जल से ही तेरे ।
कट जाते माँ नर्क घनेरे ।
राज सर्व खुशियों का तुझमें ।
पाय निहाल होते बहुतेरे ।।
माँ तेरो अति सुचि उत्संगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
दुर्गुण जन मानस से हटाती ।
ताप - पाप अभिशाप मिटाती।।
बंधन काट लख चौरासी का ।
जन -जन को बैकुण्ठ दिलाती।।
सब पातक पुंज नसावनी गंगा।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
अनायास दरस -परस हो जाता।
माँ उसका भी उत्कर्ष हो जाता ।।
नाम उच्चारण चिन्तन मनन से।
भव निधी मानव तर जाता ।।
भस्मी भूत कर भय अभंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
साधु सन्त योगी सन्यासी ।
सेवत हर -हर गंगे काशी ।।
ब्रह्म कमंडल विष्णु चरण की।
हो मईया महा पावन राशी।।
प्रेरित कर देती सत्संगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
गीता गायत्री गंगा गो माता ।
शरण तिहारी जो कोई आता।।
प्रेम श्रध्दा विश्वास आस से ।
मनवांछित सब कुछ पा जाता।।
रंग माँ "बाबूराम " निज रंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला-गोपालगंज (बिहार )
पिन-८४१५०८
मो०नं-९५७२१०५०३२
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