*बसंत बहार*
धरती पर छाई बसंत बहार,
ले लो प्रकृति के उपहार!
मन भावन धरती अम्बर तक,
बसंत का दृश्य सुहाना।
पत्ती-पत्ती फूल डाली में,
नृत्य का अद्भुत नजराना !
आम्र वृक्ष पर कोकिल गुंजन,
मधुर राग में प्रीत तराना।
धारण किये प्रकृति प्रिया ने
पीले वासंती परिधान ।
पीले कुसुम के कर्ण कुंडल,
पीली सरसों पायल समान।
मोती की मालाएं बन कर,
तुषार बिंदु शोभायमान !
छलक गई मन की रस गागर,
लहराया उमंग सभर उर सागर।
उर सागर में श्री सरस्वती,
उर्ध्व करना हमारी गति।
जन्म- मृत्यु का दो अमर वर,
यहीं पर है स्वर्ग साकार।
मालिनी त्रिवेदी पाठक
वडोदरा
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