बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते
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मेरी ज़िंदगी एक रास्ता है
जो कभी मिलना नही चाहता
अक़्सर फ़ैसले और सवाल
दोनों ही मेरे हिस्से आते है
एक वाकया इन दिनों हुआ
किसी के आने की आहट थी
ना जाने कहाँ से विरोध हुआ
मैंने अपने अंतरात्मा को टटोला
फ़िर उसको समझाते हुए बोला
क्या किसी को समझना आसान है
या फ़िर मेरे हिस्से में ही व्यवधान है
मन से फ़िर एक आवाज आई
ख़ुद को समझ लेना,
फ़िर किसी को समझना भाई
मालूम था मेरे अंदर क्या बात थी
हालात ही जब मेरे नही साथ थी
अब कैसे ख़ुद को ये बात समझाता
ना चाहते हुए भी वो पल याद आता
जबतक मुझे वैसा कुछ आभास हुआ
ख़ुद पर ऐसा कभी नही विश्वास हुआ
पर नियति आगे मैं  कैसे मुँह खोलूँगा
ख़ुद को ही अब समझाते हुए बोलूँगा
ये एक मोड़ था ,
बदलते रिश्ते का यही एक रास्ता था
जो मिलना नही चाहा, बस वास्ता था
अब किसी के आगे क्या कहूँ
उनके आने या अपने जाने का इंताजर करूँ
©सौरभ सिन्हा
  ( दुमका झारखण्ड)

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