रिश्ते

🌴 रिश्ते 🌴*
भाग रहे हैं लोग
दौड़ रहे हैं
वक्त से आगे
अंधी दौड़ में
नहीं है वक्त किसी के पास
रिश्तो के लिए
दोस्तों के लिए
यहां तक कि
स्वयं अपने लिए भी
मानव का व्यवहार रुखाई भरा
बाहर से दिखता स्वस्थ
है बीमार शरीर
थका मन
ऊंघता बोझिल मस्तिष्क
सब कुछ तो खो गया
बदल गया
प्यार ,रीति-रिवाज,
शिक्षा,परिवार,त्योहार
संस्कृति,मौसम, श्रृंगार
यहां तक की ऋतुओं का प्रारंभ
और रिश्ते भी
सोचा कभी
कहां खो गए रिश्ते
हो गए अनाथ रिश्ते
भटक रहे गलियों में
कोई तो इन्हें संभाले
अपना ले
नहीं तो सब कुछ खो जाएगा
धरी रह जाएंगी
इमारतें ,भवन, वैभव,मोटर- कार
मानव से फिर तुम
आदिमानव हो जाओगे
संभल न सके तो
खोजोगे रिश्तों को
मगर ढूंढे नहीं पाओगे
क्या हो गया
समझ नहीं पाओगे
पहचान विलुप्त
आत्मा गुप्त
सब सुस्त
न फिर खर्राटा होगा
मरघट सा सन्नाटा होगा।

रचनाकार :- शैलेन्द्र सिंह शैली
शहर :- महेन्द्रगढ़
राज्य :- हरियाणा
सम्पर्क:-9354998007
आयोजक
*बदलाव मंच(बम)*

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