उम्मीद


निराशा में उम्मीद की किरण (निबंध)

' ये करुण-क्रंदन ये कहर कोरोना का, 
किसने फैलाया ऐसा ज़हर कोरोना का !
कैद में बीत रहे दिन,पल-पल प्रलय सा लगे, 
कब तक चलेगा ये मौत का सफ़र कोरोना का !
नहीं पूछ रहा कोई हाल-ए-दिल यहाँ गैरों का, 
इश्क़ की गलियों में भी खौफनाक मंज़र कोरोना का !
हाथ से हाथ, गले से गला नहीं मिलाता कोई, 
प्यार पर भारी कैसा ये डर कोरोना का !
अधर्मी विषाणु-नाश को धर्म विफल,विज्ञान तत्पर, 
पर क्यों धर्म-विज्ञान भेद न पा रहे घर कोरोना का!
कहीं मुँह पे पट्टियां किसी से दूर हैं रोटियां, 
सुनसान सड़कों पर सुगबुगाता स्वर कोरोना का !
आसरे से दूर है आदमी कितना मजबूर है साहब, 
चाँद फ़तह करनेवाले पर कैसा असर कोरोना का!
आजीवन ऋणी रहेगा 'दीपक 'सा हर आमों खास, 
कर दे स्थायी अंत कोई अगर कोरोना का!!'

 इस वीभत्स कोरोना के काले काल में सबसे ज्यादा जरूरत है आशा के किरणों की, जो किरणें हमें इस घुटन भरे समय में भी सुकून का एहसास करा कर ऊर्जस्वित कर सकें l 

 भले ही आप बहुत ही मुश्किल में हों, आपका सब कुछ लुट चूका हो, आप बर्बाद हो चुके हों, आपके पास और कोई भी रास्ता ना हो, पर अगर आपके मन में आशा / उम्मीद हो तो आप बड़े से बड़ा मुश्किल दूर कर सकते हैं। आशा या उम्मीद को और भी बेहतर तरीके से समझने के लिए बहुत सारे ज्ञानी लोगों ने विश्व को इसके बारे में उद्धरण के रूप में बताया:-
 
आशावाद वह  विश्वास है, जो उपलब्धि की ओर जाता है आशा और आत्मविश्वास के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है।  हेलेन केलर

आशा और निराशा सिक्के के दो पहलू हैं। आशा है तो हौसले हैं, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है, तो कुछ भी नहीं है। न हौसले, न उम्मीद और न ही सफलता। निराशा क्या है? निराशा एक मनोदशा है, जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है। निराश व्यक्ति उदास, दुखी, बेबस, चिड़चिड़ा और बेचैन हो जाता है। निराश व्यक्ति अपने आपको इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने तक का ख्याल आने लगता है। निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं। जिस तरह हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है, उसी तरह निराशा के पार आशा की किरण है।

बस हमारे-आपके देखने का फर्क है। कुछ लोग निराशा के अंधकार में ही खोए रहते हैं। अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि यह अंधेरा ही सब कुछ है, जबकि बाकी लोग अंधकार में रहकर आशा के किरण की खोज करते हैं, क्योंकि वे अंधेरे की पहचान करके प्रकाश की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा। जैसे जन्म है तो मृत्यु होगी ही। यह बात गांठ बांध लें कि अंधेरे का जन्म हुआ है, तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है। एक राजा ने अपने सेनापति से कहा, दीवार पर कुछ ऐसा लिखो कि वह अच्छे और बुरे दोनों वक्त में याद करने लायक हो। सेनापति ने लिखा, यह समय भी कट जाएगा। जी हां, न आशा स्थायी है और न निराशा। यह व्यक्ति के ऊपर है कि वह किसे अपने साथ रखता है - आशा को या निराशा को।


एक व्यक्ति को नदी पार करनी थी, लेकिन उसके पास नाव नहीं थी। किसी ने उससे पूछा कि ऐसे में वह नदी कैसे पार करेगा? उस व्यक्ति ने कहा, कश्तियां नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं। किसी भी व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में भी हौसला और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। बस, अपने कर्म करते जाना चाहिए।

 "विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा ,

सदसि  वाक्पटुता  युधि  विक्रमः ।

यशसि  चाभिरुचिर्व्यसनं  श्रुतौ,

प्रकृतिसिद्धमिदं   हि  महात्मनाम्   ।।"

विपत्ति में धैर्य ,समृद्धि में क्षमाशीलता , सभा में वाक्पटु , युद्ध में पराक्रम ,यशस्वी ,वेद शास्त्रों का ज्ञाता ,ये छः गुण महापुरुषों में स्वाभाविक रूप से होते हैं  ।

" उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
 सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता!!"

एक आशावादी व्यक्ति उस सूर्य की भाँति होता है जो उगते और डूबते समय भी अपनी रक्ताभ आभा से एकरूप ही होता है l 

इस विकट परिस्थिति में हमसभी जो आशा की किरण का ऐसा ही सूर्य बनने के लिये तत्पर रहना चाहिए l 
हमें बापू का वह जंतर भी याद रखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था, विपत्तिकाल में हमेशा स्वयं से  अधिक पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को याद करना चाहिए, जिससे अपनी पीड़ा स्वतः कम हो जाती है l आज हम सभी घर में बंद लोगों से ज्यादा पीड़ित वो मजदूर हैं जो घर से दूर हैं, लहूलुहान पावों से पैदल ही घर तक पहुंचने के लिये मजबूर हैं.. उनकी पीड़ा के सामने हमारी पीड़ा कुछ भी नहीं, हमें उनलोगों की यथासंभव मदद कर के भी आशा के किरण को जन-जन तक प्रसारित करने का प्रयत्न करना चाहिए l

आशा स्वाभाविक है यह हमारे जीवंत होने का प्रमाण है , निराशा कृत्रिम है यह जीवन के मार्ग का अवरोध है जिसे संघर्ष के द्वारा नहीं हटाया जा सकता है और यदि यह जीवन में अपनी जगह बना ले तो जीवन को टूटने से कोई नहीं बचा सकता. केवल सकारात्मक भाव एवं विचार ही इससे निजात दिला सकते हैं. जब हम किसी व्यक्ति , बिषय या वस्तु के आदी हो जाते हैं तो वह हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाती है फिर हम उसके बिना अपने आप को अधूरा महसूस करते हैं.. आशा के संचार के लिए हमें कम जरूरतों में ही अब जीने की आदत डालनी चाहिए, और अंत में उम्मीद जगाती यह कविता-किरण समर्पित है -

"उम्मीद का सूरज 
आज नहीं तो कल निकलेगा, 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
हर कठिनाई का हल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!

न जाने कब से तुम पेड़  लगा रहे 
सींच-सींच श्रमजल बहा रहे 
फूल-फल नहीं बस छाया से काम चला रहे 
हरेक पुष्प से एक-एक फल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो 
जीवन फिर से चल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!

कमल कीचड़ में खिलता है 
कोयले के बीच हीरा भी मिलता है 
हवा के झोंके से कमज़ोर ही हिलता है 
झोपड़ियों के बीच भी एक महल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो.. 
जीवन फिर  से... 

तेरा सफल जरूर जीवन होगा 
तेरा जुनून तेरा ये दीवानापन होगा 
सांपों के बीच फिर से चन्दन होगा 
नासमझों के बीच से भी तुम्हें समझनेवाला एक पागल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
जीवन फिर से.... 

वो शख़्स कभी बड़ा नहीं हो सकता 
जो ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता 
लोहे की अंगूठी में भी क्यों हीरा जड़ा नहीं हो सकता !
निर्बलों के बीच भी तुझ-सा कोई सबल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !

जीवन फिर से चल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
हर कठिनाई का हल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!"

दीपक  चौधरी 'क्रांति', चंदवा, लातेहार, झारखण्ड 
सम्पर्क 7004369186

On Mon, 25 May, 2020, 10:59 AM Rotaract Club of United Ranchi, <rotaractrcur@gmail.com> wrote:
आप  किसी भी तरीके से भेज सकते है। 

On Thu, 7 May 2020, 7:46 pm Deepak Kranti, <deepakkranti225@gmail.com> wrote:

---------- Forwarded message ---------
From: Deepak Kranti<deepakkranti225@gmail.com>
Date: Thu, 7 May, 2020, 7:44 PM
Subject: निबंध प्रतियोगिता के संबंध में 
To: <rotaractcur@gmail.com>


आदरणीय महाशय, 
प्रतियोगिता में निबंध type कर के भेजना है अथवा लिख कर फोटो खींच के ?कृपया मार्गदर्शन करें 🙏
दीपक क्रांति लातेहार 
सर क्या आपने मेरा निबंध recieved कर लिया ?
सादर 
दीपक क्रांति 🙏
Show quoted text

---------- Forwarded message ---------
From: Deepak Kranti <deepakkranti225@gmail.com>
Date: Tue, 26 May, 2020, 11:31 AM
Subject: "निराशा में उम्मीद की किरण " निबंध प्रतियोगिता हेतु हिंदी निबंध 
To: Rotaract Club of United Ranchi <rotaractrcur@gmail.com>


निराशा में उम्मीद की किरण (निबंध)

' ये करुण-क्रंदन ये कहर कोरोना का, 
किसने फैलाया ऐसा ज़हर कोरोना का !
कैद में बीत रहे दिन,पल-पल प्रलय सा लगे, 
कब तक चलेगा ये मौत का सफ़र कोरोना का !
नहीं पूछ रहा कोई हाल-ए-दिल यहाँ गैरों का, 
इश्क़ की गलियों में भी खौफनाक मंज़र कोरोना का !
हाथ से हाथ, गले से गला नहीं मिलाता कोई, 
प्यार पर भारी कैसा ये डर कोरोना का !
अधर्मी विषाणु-नाश को धर्म विफल,विज्ञान तत्पर, 
पर क्यों धर्म-विज्ञान भेद न पा रहे घर कोरोना का!
कहीं मुँह पे पट्टियां किसी से दूर हैं रोटियां, 
सुनसान सड़कों पर सुगबुगाता स्वर कोरोना का !
आसरे से दूर है आदमी कितना मजबूर है साहब, 
चाँद फ़तह करनेवाले पर कैसा असर कोरोना का!
आजीवन ऋणी रहेगा 'दीपक 'सा हर आमों खास, 
कर दे स्थायी अंत कोई अगर कोरोना का!!'

 इस वीभत्स कोरोना के काले काल में सबसे ज्यादा जरूरत है आशा के किरणों की, जो किरणें हमें इस घुटन भरे समय में भी सुकून का एहसास करा कर ऊर्जस्वित कर सकें l 

 भले ही आप बहुत ही मुश्किल में हों, आपका सब कुछ लुट चूका हो, आप बर्बाद हो चुके हों, आपके पास और कोई भी रास्ता ना हो, पर अगर आपके मन में आशा / उम्मीद हो तो आप बड़े से बड़ा मुश्किल दूर कर सकते हैं। आशा या उम्मीद को और भी बेहतर तरीके से समझने के लिए बहुत सारे ज्ञानी लोगों ने विश्व को इसके बारे में उद्धरण के रूप में बताया:-
 
आशावाद वह  विश्वास है, जो उपलब्धि की ओर जाता है आशा और आत्मविश्वास के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है।  हेलेन केलर

आशा और निराशा सिक्के के दो पहलू हैं। आशा है तो हौसले हैं, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है, तो कुछ भी नहीं है। न हौसले, न उम्मीद और न ही सफलता। निराशा क्या है? निराशा एक मनोदशा है, जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है। निराश व्यक्ति उदास, दुखी, बेबस, चिड़चिड़ा और बेचैन हो जाता है। निराश व्यक्ति अपने आपको इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने तक का ख्याल आने लगता है। निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं। जिस तरह हर अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है, उसी तरह निराशा के पार आशा की किरण है।

बस हमारे-आपके देखने का फर्क है। कुछ लोग निराशा के अंधकार में ही खोए रहते हैं। अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि यह अंधेरा ही सब कुछ है, जबकि बाकी लोग अंधकार में रहकर आशा के किरण की खोज करते हैं, क्योंकि वे अंधेरे की पहचान करके प्रकाश की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा। जैसे जन्म है तो मृत्यु होगी ही। यह बात गांठ बांध लें कि अंधेरे का जन्म हुआ है, तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है। एक राजा ने अपने सेनापति से कहा, दीवार पर कुछ ऐसा लिखो कि वह अच्छे और बुरे दोनों वक्त में याद करने लायक हो। सेनापति ने लिखा, यह समय भी कट जाएगा। जी हां, न आशा स्थायी है और न निराशा। यह व्यक्ति के ऊपर है कि वह किसे अपने साथ रखता है - आशा को या निराशा को।


एक व्यक्ति को नदी पार करनी थी, लेकिन उसके पास नाव नहीं थी। किसी ने उससे पूछा कि ऐसे में वह नदी कैसे पार करेगा? उस व्यक्ति ने कहा, कश्तियां नहीं तो क्या, हौसले तो पास हैं। किसी भी व्यक्ति को बुरे से बुरे समय में भी हौसला और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। बस, अपने कर्म करते जाना चाहिए।

 "विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा ,

सदसि  वाक्पटुता  युधि  विक्रमः ।

यशसि  चाभिरुचिर्व्यसनं  श्रुतौ,

प्रकृतिसिद्धमिदं   हि  महात्मनाम्   ।।"

विपत्ति में धैर्य ,समृद्धि में क्षमाशीलता , सभा में वाक्पटु , युद्ध में पराक्रम ,यशस्वी ,वेद शास्त्रों का ज्ञाता ,ये छः गुण महापुरुषों में स्वाभाविक रूप से होते हैं  ।

" उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
 सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता!!"

एक आशावादी व्यक्ति उस सूर्य की भाँति होता है जो उगते और डूबते समय भी अपनी रक्ताभ आभा से एकरूप ही होता है l 

इस विकट परिस्थिति में हमसभी जो आशा की किरण का ऐसा ही सूर्य बनने के लिये तत्पर रहना चाहिए l 
हमें बापू का वह जंतर भी याद रखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था, विपत्तिकाल में हमेशा स्वयं से  अधिक पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को याद करना चाहिए, जिससे अपनी पीड़ा स्वतः कम हो जाती है l आज हम सभी घर में बंद लोगों से ज्यादा पीड़ित वो मजदूर हैं जो घर से दूर हैं, लहूलुहान पावों से पैदल ही घर तक पहुंचने के लिये मजबूर हैं.. उनकी पीड़ा के सामने हमारी पीड़ा कुछ भी नहीं, हमें उनलोगों की यथासंभव मदद कर के भी आशा के किरण को जन-जन तक प्रसारित करने का प्रयत्न करना चाहिए l

आशा स्वाभाविक है यह हमारे जीवंत होने का प्रमाण है , निराशा कृत्रिम है यह जीवन के मार्ग का अवरोध है जिसे संघर्ष के द्वारा नहीं हटाया जा सकता है और यदि यह जीवन में अपनी जगह बना ले तो जीवन को टूटने से कोई नहीं बचा सकता. केवल सकारात्मक भाव एवं विचार ही इससे निजात दिला सकते हैं. जब हम किसी व्यक्ति , बिषय या वस्तु के आदी हो जाते हैं तो वह हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाती है फिर हम उसके बिना अपने आप को अधूरा महसूस करते हैं.. आशा के संचार के लिए हमें कम जरूरतों में ही अब जीने की आदत डालनी चाहिए, और अंत में उम्मीद जगाती यह कविता-किरण समर्पित है -

"उम्मीद का सूरज 
आज नहीं तो कल निकलेगा, 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
हर कठिनाई का हल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!

न जाने कब से तुम पेड़  लगा रहे 
सींच-सींच श्रमजल बहा रहे 
फूल-फल नहीं बस छाया से काम चला रहे 
हरेक पुष्प से एक-एक फल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो 
जीवन फिर से चल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!

कमल कीचड़ में खिलता है 
कोयले के बीच हीरा भी मिलता है 
हवा के झोंके से कमज़ोर ही हिलता है 
झोपड़ियों के बीच भी एक महल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो.. 
जीवन फिर  से... 

तेरा सफल जरूर जीवन होगा 
तेरा जुनून तेरा ये दीवानापन होगा 
सांपों के बीच फिर से चन्दन होगा 
नासमझों के बीच से भी तुम्हें समझनेवाला एक पागल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
जीवन फिर से.... 

वो शख़्स कभी बड़ा नहीं हो सकता 
जो ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता 
लोहे की अंगूठी में भी क्यों हीरा जड़ा नहीं हो सकता !
निर्बलों के बीच भी तुझ-सा कोई सबल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !

जीवन फिर से चल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !
हर कठिनाई का हल निकलेगा 
थोड़ा बर्दाश्त कर लो !!"

दीपक  चौधरी 'क्रांति', चंदवा, लातेहार, झारखण्ड 
सम्पर्क 7004369186

On Mon, 25 May, 2020, 10:59 AM Rotaract Club of United Ranchi, <rotaractrcur@gmail.com> wrote:
आप  किसी भी तरीके से भेज सकते है। 

On Thu, 7 May 2020, 7:46 pm Deepak Kranti, <deepakkranti225@gmail.com> wrote:

---------- Forwarded message ---------
From: Deepak Kranti<deepakkranti225@gmail.com>
Date: Thu, 7 May, 2020, 7:44 PM
Subject: निबंध प्रतियोगिता के संबंध में 
To: <rotaractcur@gmail.com>


आदरणीय महाशय, 
प्रतियोगिता में निबंध type कर के भेजना है अथवा लिख कर फोटो खींच के ?कृपया मार्गदर्शन करें 🙏
दीपक क्रांति लातेहार 

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