एक शहीद की व्यथा।

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु।

विषय-काव्यात्मक कहानी
विधा-कविता
दिनांक-25/06/2020
दिन-बृहस्पतिवार

शीर्षक-एक शहीद की व्यथा।

एक सप्ताह पहले वह
घर से यह कहकर गया ।

कि मैं जल्द ही लोटकर ,
माँ  तेरी आंचल में आऊंगा।

अपनी पत्नी का बांध ढांढस कहता, 
तु रो मत पगली में लोटकर फिर आऊंगा।

अगर तू यू ही रोती रहेगी पगली
तो सरहद पर कैसे जाऊंगा।

वहां भारत माता की रक्षा
दुश्मनों से कैसे कर पाऊंगा।

अगर मुझे कुछ होता भी है,
तो तुम बिलखना मत पगली।

मैं तेरे साथ ही अपने आपको
पाऊंगा।

इतनी  बड़ी-बड़ी बाते कहकर,
वह सुरवीर घर से चला ।

माँ  भारती की सुरक्षा के लिए
वह लौह पुरुष है रण में खड़ा।

माँ  भारती के लिए लड़ते-लड़ते
उसने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया।

होकर शहीद माँ भारती का लाल,
तिरंगे में लिपटकर अपने घर को चला।

सभी वादों को भूलकर वह
योद्धा माँ भारती के लिए है लड़ा।

आज वह पहुंचा है अपने घर 
के आंगन में ,
अपने अंतर्मन से वह सभी को है निहार रहा।

सुन  माँ की बिलखलाहट 
उसकी आत्मा है रो रही।

सुन चीख प्रिय की वह भी
अंतर्मन से खूब है रो रहा ।

अपने वायदों को कर सका ना 
पूरा उसका अफसोस उसको हो रहा।

आज वो योद्धा अपने मन ही मन,
 अपनी माँ और प्रिय से बोल रहा।

तुम क्यो रोती हो माँ आज,
लाल तेरा माँ भारती की गोद में चला।

आज सब दे रहे ढांढस उसके
परिवार को तुम क्यों रोती हो पगली ।

तेरा लाल  माँ भारती की रक्षा
करते करते आज शहीद हुआ। 

नाम-प्रकाश 
Add-34-A jain Nagar Karala Delhi 110081

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ