प्रवासी-व्यथा

 बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता 
विषय: कोई भी 
विधा :काव्य (कथात्मक)
दिनांक :25/06/2020
दिन:गुरुवार
शीर्षक :प्रवासी -व्यथा
यादें बहतीँ ,आन्शू बनकर । 
राहें कहतीं ,चल अपने घर ।।
सपनों के शहर को छोड़ दिया,
हमने बेबस ,बेघर होकर ।
हाथों के हुनर को तोड़ दिया,
अपनों का कहर,लिखके थककर।।
राहें कहतीं चल अपने घर ।।
कुछ डग चलकर,ना कुछ कहकर,
मन से मनभर ,सहकर रहबर ।
नहिं शोक जिगर,ना प्रश्न-प्रहर,
धुन में रमकर ,चलना डटकर ।।
राहें कहतीं चल अपने घर ।।
नहिं अगर मगर,जीवन रथपर,
पहुँचे तट पर,बढते पथ पर ।
जो बन न सके ,पैरों का सफ़र ,
नहिं जाना है,अब उनके शहर ।।
राहें कहतीं ,चल अपने घर ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
9458689065

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