बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय-मुक्त
विधा - काव्यात्मक कहानी
दिनांक-25-06-2020
दिन -गुरुवार
शीर्षक:-
*सैनिक की अभिलाषा*
अपने प्यारे वतन की खातिर
यदि प्राण न्योछावर हो जाएं तो
मेरी क्षत विक्षत देह के
टुकड़े यदि न मिल पाएं तो
मेरे प्यारे वतन के लोगो
तुम मत घबराना !!
अर्धमूर्छित मेरी माँ को
ढांढस ज़रा बंधाना
उससे कहना
मत गिरने दे आंसुओं को ज़मी पर
वसुंधरा इस दर्द को
सह न पाएगी ।।
भावुक पिता की आंखे नम होंगी
मौन रुदन बाहर न आ पायेगा
जवान पुत्र की शहादत से
कभी न भूलने वाली पीड़ा से
वो आजीवन उबर न पायेगा
लेकिन मेरी ये कुर्बानी
उनका सीना गर्व से चौड़ा कर जाएगी ।।
मेरे छोटे भाई से कहना
'अब किसी से डर कर मत रहना
उससे कहना,
घर में अब तुम्हें ही बड़ा है बनना'
मेरी हर चीज जो उसको प्यारी थी
अब सदा के लिए
उसकी ही हो जाएगी'!!
मेरी छोटी प्यारी बहना से कहना
तुम अपना जी छोटा न करना
गुड़िया,तुम न रोना न बिलखना
हमारी सब अच्छी यादें याद करना
अफसोस कि तू अब मेरी
गोदी में चढ़ डोली में बैठ न पाएगी।
मुझको क्षमा कर देना तुम
मेरी प्राण प्यारी!
सात वचन निभा न पाया
देश हित जान मैंने वारी।।
कहना मेरे प्यारे देश से,
जब मुझे तिरंगे में लिपटा देखे
एक आँसू भी न बहाए
वरना मेरी कुर्बानी
यूँ ही व्यर्थ चली जाएगी ।।
हम वतन के वीर सिपाही हैं
मरने के लिए जन्मते हैं
जज्बातों और ज़ुबाँ से नहीं
हम शस्त्रों से बातें करते हैं
लफ़्जों से नहींअब लहू से
हमारी शौर्यगाथा लिखी जाएगी ।।
हम आज़ादी के रख वाले हैं
जो सीने पर गोली खाते हैं
प्रति पल चौकन्ने रहते हैं
तब इस देश के वासी
घरों में चैन से सो पाते हैं
दौड़ रहा है जोशो-हौसला
हमारे फौलादी सीने में
वतन के काम जो न आए
तो क्या रखा है ऐसे जीने में
माटी की ये नश्वर काया
स्वदेश हित काम में आएगी।
मत रोना मेरे वतन के लोगो
वसुंधरा इस दर्द को सह न पाएगी ।।
*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली
संपर्क नम्बर-9958045700
ईमेल-vandna.solanki@gmail.com
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